________________
वैज्ञानिक विद्युत् को अग्नि नहीं मानते। अग्नि जलाती है, और जलना, उनके यहाँ एक विशिष्ट रासायनिक प्रक्रिया है, जिसमें वस्तु हवा के सक्रिय भाग (आक्सीजन) से मिलकर एक नवीन यौगिक बनाती है, जिसका भार मूलवस्तु के भार से अधिक होता है। इस क्रिया में ताप और प्रकाश दोनों उत्पन्न होते हैं। विद्युत् : जैन आगमों की नजरों में
जैन आगमों की चिन्तनधारा मूलतः आध्यात्मिक है। जैनदर्शन का विचार और आचार आत्मानुलक्षी है, अतः वह भौतिक स्थितियों के विश्लेषण में अधि क सक्रिय नहीं रहा है। सर्वाधिक प्राचीन आचारांग और सूत्रकृतांग आदि अब भी उक्त बात के साक्षी है। हाँ उत्तरकालीन आगमों में पदार्थ विज्ञान की चर्चा अधि क मुखर होती चली गई है। उपांगों में तो वह काफी फैल गई है। जहाँ तक भगवान् महावीर की वीतराग देशना का सम्बन्ध है, वहाँ तो चैतन्य एवं परम चैतन्य का ही उदघोष है। उसी के स्वरूप की चर्चा है और चर्चा है उस परम स्वरूप को प्राप्त करने के पथ की। अब रहे जैनाचार्य, हाँ, उन्होंने अवश्य भूगोल-खगोल आदिके विशुद्ध भौतिक वर्णनों का अंकन किया है। अतः विद्युत् की चर्चा भी इन्हीं उत्तरकालीन आगमों में है।
प्रज्ञापना और जीवाजीवाभिगम आदि आगमों में विद्युत् को अग्नि माना गया है, और उसे अग्निकायिक जीवों में परिगणित कर सचित्त भी करार दिया गया है। मालूम होता है, यह मान्यता प्रज्ञापना आदि किसी एक आगम में उल्लिखित हुई है, और उसी को दूसरे आगमों ने दुहरा दिया है। क्योंकि उक्त वर्णन की शैली तथा शब्दावली प्रायः एक जैसी ही है। जैनाचार्य भी आखिर छद्मस्थ थे, सर्वज्ञ तो थे नहीं, अतः उन्होंने विद्युत् को सुदूर बादलों में चमकते देखा और उसे लोक धारणाओं के अनुसार अग्नि मान लिया। लोक-मान्यताओं का जैनाचार्यों पर काफी प्रभाव पड़ा है। इस सम्बन्ध में आगमों के अनेक वर्णन उपस्थित किए जा सकते हैं। यहाँ विवेच्य विद्युत् है, अतः हम इसी की चर्चा करना चाहते हैं, शेष किसी अन्य प्रसंग के लिए रख छोड़ते हैं।
जिस प्रकार पुराकालीन अन्य जनता विद्युत् को दैवी प्रकोप मानती थी, जिसका उल्लेख हम पहले कर आए हैं, जैनाचार्य भी उसी प्रकार विद्युत् को दैवी
___98 . प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org