SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ ] दोहा : छपै : बुद्धि-विलास समयादिक परजाप कौं, काल वर वस मुझांहि । काल प्रण जागे नही, जै असंख्य जग मांहि ॥ ५०३ ॥ कहां ते । काल अरूण जो नांहि समय तौ होय सुथिर वस्तु विन नांहि नास उतपति तहां तें ॥ जगत मैं । असत्त जनम जै होय होय घर श्रंग वुद्धि होय परमांन और षिनभंगुर मत मैं ॥ नहि सधै वस्तु सीमां विमल जनम नास थिर भाव विन । थिरत निमत्त समयादिकी काल अणू जगि कहहि जिन ॥ ५०४ ॥ कवित : मां मनसू वृत के गरधर घोरो भयो, काहू काज के निमत मांस मुनि गहै हैं । घरि २ विहरि २ अंन मांगि ल्याव, कहैं मुनि थांन श्रांति भोजन कौं लहै हैं ॥ निज मत निंदक कौ ठौर मारे पाप नाही, Jain Education International निर्दय सुभाव धरि काहू की न सहै हैं । सांची बात झूठी कहै भेद वस्त्र को न लहैं, हठ रीति गहिर हैं मिथ्या बात कहै हैं ॥५०५ ॥ भरथ नैं ब्रांह्मी वहन' कहै नारी कोनी, महासती दोष लाइ भववास चहे हैं । वसत ही केवली भरथ भयो, आरसी के मंदिर मैं द्रोपदी सती कौं कहैं भई पंच श्रघ वंध भारी करि संकट मैं फहै हैं । ग्रहवास ५०४ : १ थिरता । ५०५ : १ missing ५०६ : १ वहैं । सांची वात झूठी कहैं वस्त्र' कौ न भेद लहैं, हठ रीति गहि रहें मिथ्या वात कहै हैं ॥५०६ ॥ कोक मुनि कंध परि पंथ मैं गुरू कौं लियें, चल्यौ जात केवली भयो है सरद है हैं । मांनि निरवहै हैं ॥ भरतारी', २ भई not in AI ३ बस्तु । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy