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बुद्धि-विलास आदिनाथ कौं प्रगट कहत हैं जुगलिया,
तिनकौं ही फिरि कहैं भये ते पति तिया ॥४७१॥ चौपई, कहै जुगलिया कोऊ मूवो, ताकी तिय हि रडायो हूवो।
सोही रिषभदेव धरि पानी, भई सुनंदा दूजी रांनी ॥४७२॥ सोरठा : कराहिन निदंक काजु,जो सामोनि के होय जन ।
क्यौं करि श्री जिनराज, कर कारिज विधि करम ॥४७३॥ छप्पै : कोऊ कोऊ कहै रिषभ थौ विप्र तास तिय ।
देवा नंदा तासु गर्भ जिनवीर अवतरिय ॥ दिन अस्सी अरु तीन लयो प्रभू वास तहां हीं।
तवै ईद्र यह वात विचारी है मन माही ॥ हीन जाति द्विज कुल विष, महा पुरष अवतार।
जोग्य नहीं तातै करौं, और गर्भ संचार ॥४७४॥ सोरठा : दियो' इंद्र प्रादेस, हिरन गवेषी देव कौं।
करवायो परवेस प्रभु, त्रिसला के गर्भ मैं/४७ चौपई : पहिलै गर्भ क्यो न हरि लोनौं, गएँ तियासी दिन क्यौं कीनौं।
पहिलै का जानत हो नांहों, कहौ विचारि धारि मन मांही ॥४७६॥ अरिल : दुज घरिवा सिद्धारथ घरि प्रभु संचरयौ,
गर्भ कल्यांनक कहौ कहां जिन को करयो। जो द्विज घरि भौ होय हीनता ईस की,
सिद्धारथ घरि न वनै क्रिया जगीस की ॥४७७॥ द्वै दोन्यो धरि तौ कल्यान कछह गनौं,
जो दोन्यौं के न हितौ च्यारयौं हो भनौं। सील भंग तो होय जिनेश्वर मात का,
यातै वीरज नांहि सिधारथ तात का ॥४७८॥
४७३ : १ करहिन । २ निदिक । ३ सामानि । ४७५ : १दयो।
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