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बुद्धि-विलास अव हम ऊपरि किरपा कीजे, जिह विधि चलै सु चलिवा दीजे ।
तौ हम पाय पूजि निति तुम्हरे, जीमैं हो तुम सतिगुर हमरे ॥४२६॥ दोहा : जव ते पूजत प्रथम ऐ, धरि पाटी परि पाय ।
कोऊ अस्ति वतांवहीं, पूजत मन वच काय ॥४२७॥ चौपई : अर्धफालक सव देसनि मांहि, फैल्यो मत यम संसय नांहि ।
असे काल वितीतौं घणौ, वरष सैकड़ा फुनि तुम सुरणौ ॥४२८॥ भऐ उजेरणी विक्रम भूप, माता पद्मावती' अनूप । गंध्रवसेन पिता तसु जांनि, हौ विद्याधर वह गुनषांनि ॥४२६॥ विक्रम प्राकर्मो चहु धनी, धर्मवान दांनी वहु गुनी। तिनु वुलाय पंडित रिष सवै, नमि विनती म' कीन्ही जवै ॥४३०॥ संवत्त नयौ चलावन तनौं, मेरे भाव उपज्यौ धनौं ।
वै वोले झगरौ पाछिलो, मेरै' संवत चलि है भलौ ॥४३१॥ दोहा : लैन देन वोरन कौं, धन दै कलहि' मिटाय' ।
तिह विक्रम भूपति नयौ, संवत दयो चलाय ॥४३२॥ चौपई : फुनि विक्रम तौ सुरपुरि गए, केते वरष वहुरि वीतऐ।
वरष ऐकसौ भऐ छतीस, तवें वजेणी' भऐ महीस ॥४३३॥ चंद्रकीर्ति हौ ताकौ नाम, चंद्रसिरी भई ताकी वांम ।
तिनकै सुंदर पुत्री भई, नाम चंद्ररेषा गुनमई ॥४३४॥ दोहा : ताहि पढाई भूप वन, अर्धफालकनि पासि ।
सांतिकीति को सिष्य हुतौ, जिरणचंद नाम प्रकासि ॥४३५॥ सौ तौ कनवज देस कौं, गऐ सु ताहि पढाय । फुनि कन्यां जोवनसहित, देषी जव ही राय ॥४३६॥ सुन्दर सोरठ देस मैं, वलभा नगरी जांनि । प्रजापाल नृप के तिया, प्रजावती गुनषांनि ॥४३७॥
४२६ : १ पदमावती। ४३० : १ इम। ४३१ : १ मेटें। ४३२ : १ कलह । २ मिटाइ। ४३३ : १ उजेणीं।
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