SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२ ] बुद्धि-विलास गृधपछि फुनि लोहाचारिज नाम हैं, ऐलाचारिज पूजिपाद अभिराम है ॥२९२॥ वड़े कवीस्वर' वीरसेनि२ जिनसैनि है, इक दस ऐं गुरगनंदि भले त्तिनु वैन हैं। सुमतिभद्र श्रीकुंभ अवर सिवकोटि ऐ, ___कहे सिवायन विस्वसेन जग वोटिऐ ॥२९३॥ गुरणभद्राचारिज गुण अधिक विराज ही, है अकलंक रु सोमदेव छवि छाजही। प्रभाचंद अरु' नेमचंदर मुनिराज है, ऐ ईकईस भऐ गुर धर्म-जिहाज है ॥२६४॥ इत्यादिक जे मूलसंघ-धारक मुनी, जिनके रचे सासत्रिनि नाचत है दुनी। तिनके वचननि वांचि मांनिवो जोग्य है, जे मांनिहि ते जगमैं महामनोग्य है ॥२६५॥ दोहा : रचे जु संघाभास मुनि, गृथ भले भी कोय । तिनहि वाचिवो मांनिवो, जोग्य नही भवि लोय ॥२९६॥ कारण याकौ यह लषौ, वै कहि मीठी वात । फुनि लुभाय वह काय कैं, निज मत मैं ले जात ॥२९७॥ अरिल' : पूर्वाचारिज वचन कहै सो मानिए, ___ वीतराग के वचनतुल्य वे जानिएँ । जांनन वाले भविया पंचम काल मैं, वंदनीक ह है गुर परम दयाल मैं ॥२९॥ पहिलै दर्व्य लंग को धारत है गुनी, पीछे ह है भाव-लिंगधारी मुनी। विन दर्वो वह व्रत हूँ करतौ होय जो, वंदनीक नहि होय जगत में सोय जो ॥२६॥ २६२ : २ गृद्धपछि । २६३ : १ कवीसुर। २ वीरसेन । ३ जिनसैन । २६४ : १ अरु। २ नेमिचंद । ३ इकईस । २६५ : १ सासत्रनि । २६८ : १ अरिल छंद । २वै। २६१.१ लिंग। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.jaineli
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy