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बुद्धि-विलास गृधपछि फुनि लोहाचारिज नाम हैं,
ऐलाचारिज पूजिपाद अभिराम है ॥२९२॥ वड़े कवीस्वर' वीरसेनि२ जिनसैनि है,
इक दस ऐं गुरगनंदि भले त्तिनु वैन हैं। सुमतिभद्र श्रीकुंभ अवर सिवकोटि ऐ,
___कहे सिवायन विस्वसेन जग वोटिऐ ॥२९३॥ गुरणभद्राचारिज गुण अधिक विराज ही,
है अकलंक रु सोमदेव छवि छाजही। प्रभाचंद अरु' नेमचंदर मुनिराज है,
ऐ ईकईस भऐ गुर धर्म-जिहाज है ॥२६४॥ इत्यादिक जे मूलसंघ-धारक मुनी,
जिनके रचे सासत्रिनि नाचत है दुनी। तिनके वचननि वांचि मांनिवो जोग्य है,
जे मांनिहि ते जगमैं महामनोग्य है ॥२६५॥ दोहा : रचे जु संघाभास मुनि, गृथ भले भी कोय ।
तिनहि वाचिवो मांनिवो, जोग्य नही भवि लोय ॥२९६॥ कारण याकौ यह लषौ, वै कहि मीठी वात ।
फुनि लुभाय वह काय कैं, निज मत मैं ले जात ॥२९७॥ अरिल' : पूर्वाचारिज वचन कहै सो मानिए,
___ वीतराग के वचनतुल्य वे जानिएँ । जांनन वाले भविया पंचम काल मैं,
वंदनीक ह है गुर परम दयाल मैं ॥२९॥ पहिलै दर्व्य लंग को धारत है गुनी,
पीछे ह है भाव-लिंगधारी मुनी। विन दर्वो वह व्रत हूँ करतौ होय जो,
वंदनीक नहि होय जगत में सोय जो ॥२६॥
२६२ : २ गृद्धपछि । २६३ : १ कवीसुर। २ वीरसेन । ३ जिनसैन । २६४ : १ अरु। २ नेमिचंद । ३ इकईस । २६५ : १ सासत्रनि । २६८ : १ अरिल छंद । २वै। २६१.१ लिंग।
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