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बुद्धि-विलास
[ ३७ अजिका सिष्य गृहस्थ आदि नर थोड़ी वुधि वाले जो होय । तिन आगै सिधांत आचार सु गूंथन वाचहि जे मुनिलोय ॥२५४॥ होय' विसंघी जती सु तिनकौं गूथ सिधांत अवर प्राचार । कवहू नाहि सुणाय पढावहु सुरिणवौ हू वनको नहि चार ॥ वहुरि वंदना पीछ२ पहली कवहूं करिवो नांहि न जोग्य ।
असे कही सासत्रिन मैं गुरु धारहि ते मुनि महामनोग्य ॥२५॥ छंद अरिल' : दोषित होय नवीन मुनीस्वर जासकौं,
वडी अजिका होय सु वेदै3 तासकौं । भक्तिभाव करिकै सव संका यरहरै,
अजिका तैं मुनि प्रथम वंदना नाहि करै ॥२५६॥ अजिका पाप नमोस्त मुनी कौं जव करै,
कर्मक्षयोस्तु समाधिरस्तु मुनि ऊचरै। श्रावग करै नमोस्त जपें मुनिनाथ सौं,
धर्म-विधी देवै तव मुनि निज हाथ सौं ॥२५७॥ मिथ्याद्रष्टी' भी कोई वंदन कहै २,
परि वह भले वरण को ह निज कौं चहै। ताहि मुनीस्वर धर्मविधि कहि अघ हरै,
सूद्रनि कौं कहि धर्मलाभ राजी करै ॥२५८॥ समकित दरसण' करि चांडाल जुसुद्ध है,
कर वंदना मुनि कौं२ मुनी सुवृद्ध ह। पापक्षयोस्तु कहै ताकौं सुभ वै नहीं,
वाकौं और कहन की विधि कछु हैं नहीं ॥२५॥ कवित्त : गायक तमोली तेली माली छीपी कोटवाल,
वहुरि कलाल मद वेचै है वनाय के।
२५४ : २ जे। २५५ : १ होत। २ पार्छ। ३ नु। ४ सासत्रिनि । २५६ : १ A अरिल only | २ दीक्षत। ३ बंदै । ४ परि हरै। २५७ : १ वृद्धि। २५८ : १ दृिष्टि । २ कहैं। ३ चहैं। ४ वृद्धि । ५ करें। २५६ : १ A दरण। २ कौं।
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