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छद पद्धरी:
बुद्धि-विलास अव सुनिऐ भविजन वात ऐक, देहुरे वने पुर मैं अनेक । सोहत सुंदर सिव विस्नु' जैन, तिनको उपमा' कहतें वनै न ॥१४॥ षटमत के नर-नारी प्रवीन, निज धर्म मांहि निति रहै' लीन । तिन मांहि देहुरा ईकर विसाल, तँह राजत नेम प्रभू दयाल ॥१८॥ लसकरी नाम कहियत महान, मनु रच्यो विरंचिजु करि सयांन । मधि चौंरी प्रभुको मत प्रमान, अति वनी फटिक सम लगि पषांन ॥१६॥ ता मांहि जटित है स्याम संग, मनु लसत नील मनि' अति सुरंग । चित्राम वन्यौ तामैं अनूप, लखि२ भविजन पावत निज सरूप ॥१८७॥ पंडित तहां राजत है कल्यांन, वहु तरक न्याय वाचत पुरांन । निज धर्म' कर्म मैं सावधान, विन धर्म वात जिनके न प्रांन ॥१८॥ गुनकीरति यक मुनिवर महान, तप करत अधिक जिनमत प्रमांन । तिन' प्राग्या दी यह रचहु गुथर, जामैं वहु विधि व जैनि पंथ ॥१६॥ मुनि संघ गछ्छ ह' आमनाय, जिनकी उतपति कहिऐ वनाय ।
१८४:१बिश्नु। २ उपमां। १८५ : १रहैं। २ इक । १८७:१मरिण। २लषि। १८८:१धर्म। १८६: १तिनु। २ ग्रंथ । १९०:१गरण।
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