SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २६ छद पद्धरी: बुद्धि-विलास अव सुनिऐ भविजन वात ऐक, देहुरे वने पुर मैं अनेक । सोहत सुंदर सिव विस्नु' जैन, तिनको उपमा' कहतें वनै न ॥१४॥ षटमत के नर-नारी प्रवीन, निज धर्म मांहि निति रहै' लीन । तिन मांहि देहुरा ईकर विसाल, तँह राजत नेम प्रभू दयाल ॥१८॥ लसकरी नाम कहियत महान, मनु रच्यो विरंचिजु करि सयांन । मधि चौंरी प्रभुको मत प्रमान, अति वनी फटिक सम लगि पषांन ॥१६॥ ता मांहि जटित है स्याम संग, मनु लसत नील मनि' अति सुरंग । चित्राम वन्यौ तामैं अनूप, लखि२ भविजन पावत निज सरूप ॥१८७॥ पंडित तहां राजत है कल्यांन, वहु तरक न्याय वाचत पुरांन । निज धर्म' कर्म मैं सावधान, विन धर्म वात जिनके न प्रांन ॥१८॥ गुनकीरति यक मुनिवर महान, तप करत अधिक जिनमत प्रमांन । तिन' प्राग्या दी यह रचहु गुथर, जामैं वहु विधि व जैनि पंथ ॥१६॥ मुनि संघ गछ्छ ह' आमनाय, जिनकी उतपति कहिऐ वनाय । १८४:१बिश्नु। २ उपमां। १८५ : १रहैं। २ इक । १८७:१मरिण। २लषि। १८८:१धर्म। १८६: १तिनु। २ ग्रंथ । १९०:१गरण। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.jaineli
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy