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बुद्धि-विलास मान-वंस-भान जयसाहि के समान स्यांम,
हरत गुमांन निज दांन सौं धनद के ॥ मोती अनहद के जराऊ साज सदके,
___कर हार रद के अनाथ दीन दरद के। जीन जंवूनद के तुरंग करी-कद के,
मतंग मंति मद के कढत सदा सदके ॥१७७॥ सोरठा : चढी फौज करि कोप, भिरि भागे' जट्टा प्रवल ।
नई चढी यह वोप, कछवाहन' को तेग कौं ॥१८॥ दोहा : तिनकै पटि बैठे पुहमि, प्रथ्वीस्यंघ नरिंद।
सकग प्रजा पोषन मनौं, प्रगटे प्राय सुरिंद ॥१७॥ छद भुजंग उदै अंग अंवावती पीठि उग्यौ, प्रयात
मनौ3 अर्क सौ उग्र तेजा सुहायौ। अन्योक्त: धरै धर्म सेतून के दिवि वान,
बड़े भाग को छत्र मांथै तनायौ ॥ म्हाराज राजेस्वरी की क्रपा ते,
म्हाराजि राजांन' को विश्व भायौ । प्रथी पालिवे को प्रथीराज' मानौं,
प्रथीस्यंघ को धारि के रूप प्रायौ ॥१८०॥ सोरठा' : प्रथ्वीस्यंघ विष्यात, जा दिन तें भूपति भए।
मिटे सकल उतपात, सुषी भई सारी प्रजा ॥१८१॥ दोहा : लषौ भागि-वल' भूप कौ, मरयौ गयो रिपु जाट ।
भऐ सत्रुतै मित्र सिष, इहै पुन्य कौ थाट ॥१२॥ नर-नारी दे आसिष, प्रथ्वीस्यंघ नरेस । अचल राज करि जगत की, रक्ष्या करौ हमेस ॥१३॥
१७७ : २ हरद। २७८ : १ भाग्यौ। २ कछवाहनि । १८० : १ अन्योक्ति। २ शृंग। ३ मनौं।
६ राजेश्वरी। ७क्रिपा। ८ तें। १८१ : १ सौरठा। १८२ : १ भाग्यबल। २ गयो। १८३ : १ रक्षा ।
४ missing | ५ महाराज । राजांनि। १० प्रथ्वीराज।
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