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________________ बुद्धि-विलास [ २५ छंद : मंत्री घने' वुधिवांन हैं, जानें जिन्हें सु जिहांन हैं। सौंप्यौ तिन्है नृप भार कौं, हक देत हैं हकदार कौं ॥१५६॥ अंगी अनेक षवास ते, अति चतुर गिनत उसास ते। वहु काम के बहु भांति के, संपति सहित सुभ कांति के ॥१५७॥ वहु सुभट सजि प्रावै जहां, वैठे सभा मधि नृप तहां । जैसे हुकम भूपति करें, तैसे करें नांही टरै ॥१५८॥ इन आदि चाकर हैं जिते, हक पाय राजी ह तिते। प्रभु-भक्ति करि जस गात हैं, सुष मांहि घोंस वितात हैं ॥१५॥ दोहा : पांचौं विधिजुत राज परि, राजत कूरम भान । __ रैति सुषी भंडार वहु, नीति सु दांन क्रपान ॥१६०॥ छद पद्धरी: चहुधा पुर' के गिर है उतंग, तिनपै गर बनवाऐ२ उतंग । पूरव दिसि गढ रघुनाथ नाम, तलि तीरथ गलता है सु ठांम ॥१६॥ दक्षिण दिसि संकर-गढ अनूप, वनवायो माधवस्यंघ भूप । हथरोही को गढ दुतिय जांनि, पछि छम हि सुदरसन गढ वांनि ॥१६२॥ उत्तर वावति है सुथांन, तापै स्वाई जै-गढ महांन । उत्तर दक्षिण' की कूरण पाय, इक ब्रह्मपुरी दीन्ही वसाय ॥१६३॥ १५६ : १ घनैं। २ है। १६१ : १ चहुंघांपुर । २० वनवाऐ। ३ अभंग। ४ रुघनाथ । १६२ : १ पछिम । १६३ : १ पछिम । +Bodyguards. The Rayyiat. *For Brahmins to reside there. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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