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बुद्धि-विलास नृप कीन्हें असमेदादि जग्य, वह दांन दिऐ लषि द्विज गुरणग्य । यह जस फैल्यौ चहु दिसि मझार, सुनि विप्रादिक प्राये अपार ॥१६४॥ तिनु ब्रह्मपुरी मैं दै वसाय, धन धान्य' टौर दिय अधिक राय । फुनि पूरव दक्षिण वीचि और, गिर परि अंवागढ विषम ठौर ॥१६॥ चहुधां पुर के उपवन अनेक, तरु सुफल फले तिनमैं प्रतेक । फुनि वन गिर सोभा अति लसंत,
तहां ध्यान धरत मुनिजन महंत ॥१६६॥ हुतौ राज अंधावती, सो जयपुर में ठानि । करन लगे जयसाहि नृप, सुरपति सम सुष दांनि ॥१६७॥ भये भूप जयसाहि के, पुत्र दोय अभिराम । ईस्वरस्यंघ' भये प्रथम, लघु माधोस्यंघ' नाम ॥१६८॥ रामपुरो' दुर्ग भान को, ताको लै के राज। दीन्हो माधोस्यंघ कौं, संगि दये दल साज ॥१६॥ वहुत वर्ष लौं राज किय, श्री जयस्यंघ अवनीप। जिनकै पटि बैठे स्वदिनि', ईस्वरस्यंघ महीप ॥१७०॥ तिनको दांन क्रपान कौ, जग जस करत अपार । जिन सौं जंग जुरे तिन्हैं, करि छांड़े पतझार ॥१७१॥
दोहा :
१६४ : १ असमेधादि । १६५ : १धांन। १६८ : १ माधव। १६६ : १ रामपुरौ। १७० : १ सुदिन ।
tAswamedh Yagya. -
Able Brahmins. *(b. 1721-d. 1750 A,D.) Also see the "Isvaravilasa-Mahakavya" (Rajasthan Puratana
Granthmala No.29) tf(1750-67 A.D.)
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