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बुद्धि-विलास प्रीतम' निवास फुनि सुष निवास, वैठक दीवान सभा-निवास । फुनि चंद्र-महल' आदि जु प्रवास, कवि कर कहां लौ वरन तास ॥१५०॥ ऊचे दरवाजे सुगम वाट, कंचन-सम जटित वने कपाट । लगते वनवाऐ चौक ईस, तँह रहैं कारषांने छतीस ॥१५॥ यह' हुतौ कारषाने२ त नौंसा, पारसी' नाम ता मद्धि दोस। नृप काढि हिंदवी नाम कीन, गृह-संग्या यह ठांनी नवीन ॥१५२॥ गज-ग्रह मैं गज मद झर लसात, भैरावत हू तिनु लषि लजात । सुंडिन मैं ते लकै पहार, फैकत है पारावार पार ॥१५३॥ वहु अस्व-साल' मधि है तुरंग, राजत है सुंदर प्रति उतंग। फेरत'र के विनु मैं फिरै सु, मन पवनहु ते प्राधे क. सु॥१५४॥ फुनि रतन-गृहै अरु धन-भंडार, तिनके वरनन को है न पार, इन प्रादि ग्रहै' जो हैं समस्त, भरि पूरि रहो तिन मांहि वस्त ॥१५५॥
१५० : १ प्रीतिम। २ महल । १५२ : १ यहु । २ कारषाने । १५४ : १ अश्वसाल। २ जे। १५५ : १ AJहै।
३ मनु ।
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Persian. *Nomenclature. tt Ocean.
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