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बुद्धि-विलास सतषणे कलस सुवरण: उतंग, तिना परि ध्वज फहरत पंचरंग ॥१४४॥ प्रांगन फट्टिक स मलैं पषांन, मनु रचे विरंचिजु करि सयांन । दै' प्राव सलिल सम सिंह वनाय, तह प्रगट परत प्रतिविव प्राय ॥१४५॥ मरिण-कंचन-जटि मधि करी भीति, दुति लषी परत लषि के पछीति । जह कनक-पाट दीने कपाट, किय जटि विडूर' सोपांन वाट ॥१४६॥ मरिण-पचित पंभ मधि जगमगात, मनु रतन-सांन वहु विधि लसात । वह रची चित्रसाली' विसाल, राजिंद्र२ रमत तह सहित वाल ॥१४७॥ कवहू मरिण-मंदिर मांहि जाय, तिय दूजी लषि प्यारी रिसाय' । तव मानवती लषि पिय हँसाय, कर जोरि २ लेहैं मनाय ॥१४॥ मरिण-जटित कुंभ अति जगमगांहि, वहु भरे सुव्व' जल तैं लसांहि । दधि - दूव - धूप - जुत - हेम सार;
सोहत अंतहपुर द्वार द्वार ॥१४६॥ १४४ : २ सतषणें। ३ कंचन। ४ तिन । ५ फैहरत । १४५ : १दे। १४६ : १दीन्हैं। १४७ : १चित्रसारी। २राजेंद्र। १४८ : १रिसाइ। २ हसाय। ३ लैहैं। १४६ : १ सुद्ध। २ थार।
The poet refers to the Chandra Mahal Palace, the following are the names of the seven storeys, Chandra Mahal, Pritam Niwas, Sukh Niwas, Shobha Niwas, Chabi Niwas, Sri Niwas and theMukut-Mahal. #The royal banner of the Kacchawaha Rajputs of Amber. *Sk. वैदूर्य।
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