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________________ २२ ] बुद्धि-विलास विरह-वेदना कहत मनौं पिक टेरिके, सुनत भौंर हुंकार देत मन फेरिके। तरु-वेलनि के रहे फूल-फलभूलि वे, देषत सुर नर प्रात-जात मग भूलि वे ॥१३८॥ वहुरि ताल यक' तालकटौरा है त, मनौं सरोवर मांन देषि छवि कौं हरै। वहुरि सवाई जयसागर यह नाम है, ताको तीरन सुभटादिको के धाम है ॥१३॥ विमल नीर ते भरे लय प्रांनंद ह, पंछी-गन तहँ विहरत प्राय सुछंद ह। चक्रवाक चातिक' चकोर चहु देषिऐ, कहुं कपोत कलहंस कोकिला पेषिये ॥१४०॥ कहूं मोर नाचत छत्री करि चावसौं, कहुं सारिस कहुं वुग ठाढे इक पाव सौं। कहूं वैठि कलवंक संक तजि रति करें, कहुं टिट्टभि कुकटनु प्रादि वहू षग तिरै ॥१४१॥ कहूं करत नर कामिनि प्राय सनांन कौं, मनौं सुरसुरी' पाए छाडि २ विमान कौं। वहुरि मानसागर यक दीरघ ताल है, तामैं सरिता मिली सु अति सोभा लहै ॥१४२॥ दोहा' : या विधि कछु संछेप२ से, वरने सरवर वाग। अव नृप मंदिर वर्न' कछु, सुनिऐ करि अनुराग ॥१४३॥ छौंद पद्धरी : लषि वाग सघन अदभुत नरिंद, वनवाऐ ता मधि महल-वृंद' । १३६ : १ इक। २ इह । ३ तीरनि । १४०:१चातिग। १४२ : १ स्वर-स्वरी। २ छांडि। १४३ : १दौहा। २ संषेप। ३ वरन । १४४ : १ वृिद। tFeudal-chiefs. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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