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बुद्धि-विलास
[ १३ चलाऐ घने वान' प्राकास छाऐ, तमासे२ घने जोगिनी जक्ष प्राऐ। कियो जुद्ध भारी घने सत्रु मारे, वचे जे तिनौंन तिने दंत धारे ॥१॥ वड़े भूप भू मैं हुते मारवारी, तिन्ही मैं चढी कोपि के फौज सारी। लगे पाय वे छांडिक' राजधांनी,
चहूं चक्क नैं भूप की प्रान मांनी ॥२॥ दोहा : मांनी प्रांन सवै नृपति, प्राऐ अधिक उमंगि। पाय लागि विनती करी, हमैं राषिए संगि ॥३॥
वान वर्नन (अ०') ॥ कवित्त : कूरम नरिंद जयसाहि वाहैं परकै,
सु पार होत पल मैं सहज सूकी परके। चलत सलूक चुकुटीर के और कर के,
सुवकतर टोप करी काच जिम करकै ॥ 'सूरजि'४ भनत करै घाव जाही धर-कैं,
सु वाकौ हियौ नैंक वेर दोय-तीन धरकै । मालिम जगत मैं लगत जाही५ सर-कैं,
सु हाथी पैंड़ पाच सात पाछे पाय सरकै ॥१४॥ कवित्त' : कोप करि कूरम सवाई जयस्यंघ नृप,
चढ्यौ जोधपुरवारे प्रभैस्यंघ मारू २ परी। फौजन की गरद न दीसैं भान-मंडलहू,
सिंधः सूकि गऐ को गनत नदी नारे सर ॥
६१ : १ वारण । २ तमासे। ३ धनें। ४ जे जिन्होंने । ६२ : १छाडिवे। ६३ : १ दौहा। ६४ : १ missing | २ चिऊटी। ३ जिमि । ४ सूरज। ५ जांही । ६५ : १ कबित्त, missing In A। २ मारू। ३ भानु। ४ सिंधु ।
tcf. Ms. no.4287 in the Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur collection.
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