________________
१२ ]
बुद्धि-विलास कवरपदै किसनेस कै, विसनस्यंघ हुव पुत्र ।
राज कियौ अंवावती, जीति सकल षल सत्रु ॥५॥ छप्पै जिन जट्टन अली हुसैन भल्ली विधि कुट्टिव । अन्योक्त' : जिन जट्टन सफीषांन नद वहु भांत अहुट्टिव ॥
जिन जट्टन मैहरावषांन-गुमान गुमायौ । जिन जट्टन मुकरब्बिषांन कर कुट्टि' षिलायौ ॥ 'कवि राम' वहादरषांन सौ, जंग जुट्टि वसु लुट्टि लिय' ।
नृप विसनस्यंघ सोइ तेग वर, जट्ट थट्ट दहवट्ट लिय ॥८६॥ दोहा' : विसनस्यंघ नृपकै भऐ२, श्री जयस्यंघ नरिंद ।
तिनंहि सवाई पद दयौ. दिल्ली सुरपति हिंद ॥७॥ संगि लिए' चतुरंग दल, रथ पायक गज वाजि ।
कूरम श्री जयस्यंघ नृप, चढे गढौं पैं साजि ॥८॥ छंद भुजंग प्रयात : गढौं पैं चढे भूप वालापनै' मैं,
दिसा दक्षिणी परवतौं के गर्ने। मैं । किला तोरि के खेलना खेलना से, मनौं वालकौं नै किऐ५ हैं तमासे ॥८६॥ लरे सैद वे दौरिकै सांभरी मैं, मिलाये जमौं सैं तिनंहूं घरी मैं। भिरे साहिजादे भयो जंग भारी, तहां भूपहू कोपि कीन्हीं सवारी ॥१०॥
८६ : १ अन्योक्ति । २ मांति। ३ गुंम्मान। ४ गमायौ। ५ कुट्ट। ६ किय ।
७ सोई। ८ देह वट्ट । ८७ : १ दौहा। २ भए। ८८ : १ लिये। ८१:१ बालापनें। २ गर्ने। ३षेलनां। ४ नं। ५किये। १० : १ मिलाए। २ कोनी।
Fort of Khelana or Vishalgarh on the crest of the Sahyadri hills in the Deccan. It is said that the title "Sawai" was conferred upon Jai Singh, when hardly sixteen, by the Emperor Aurangzeb in recognition of his personal qualities shown by him during the Khelana campaign (A.D. 1702)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org