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________________ कवित्त 'अन्योक्त' : दोहा : बुद्धि-विलास [ ११ सिव सिंघ श्रग्य जग्गी श्रवनि, यम जगत्त जारन लयव । वल दलति जलद जयसाहि-दल, नहि पिष्षिय कब बुझि गयव ॥८०॥ कवित्त : दोहा : फौजन र तैं प्रापन दवाय राषी दसौं दिसि, अरनिकों रावी न निसांनी कहूं हिरकी । साहि के सुभट जयस्यंध गिर मेर गुर, गाहि गाहि गाही ठौर कीनों बोल ऊपर प्रताप दीन हू राषी न गुमर की ॥ पर, सु भूप तैं पाघ राषी भूपनि के सिर की । थर थर थार को सौ पारौ थहरात ही, सु तेही लगि थांभ पातसाही थांभि थिर की ॥ ८१ ॥ भऐ भूप जयस्यंघ कै, रांमस्यंघ महाराज । तिनके संगि सदा रहे, कविजन सुभट समाज ॥८२॥ प्रताप वर्नन किलकत काली जुग्गननि कै' जसन होत, 'सुकवि धुरंधर' जमाति जुरें देवी की । श्रौर हूं कहां लौं कहौं दौर" रांम कूरम की, दविगे दिगज देव-दानव न ऐवी की ॥ धसकी धरनि डाढ मसकी ब़ढायर की, कसकी कमठ-पीठि रसम रकेवी* की । दिग्ग दल भारकै दवाऐं वे सम्हार ह्व कं, भयौ भांति सिमटि भुजंगम जलेवी की ॥ ८३ ॥ भऐ रांम नृप के कंवर, किसनस्थंघ जिम भांन । तिनके तेज कृपान कौं जानत सकल जिहांन ॥८४॥ ८० : ७ स्यंध । ८१ : अन्योक्ति ८ दलिति । २ फोजन । २ तिनकं । ८२ : १ भए । ८३ : १ कें । २ दोर । ३ एवी । ४ उठायरकी । ५ पीठि । ८४ : १ दौहा does not occur in AI २ भए । ३ क्रपान | Jain Education International & Aक बुझि । ३ कौ । ४ हरात । ५ पातिसाही । fcf. Bhusan 'थारा पर पारा पारावार यों हलत है' (Shiva-Bavani). Kulapati Misra was a Court-poet of Ram Singh. *The convex back of the mythological crab became concave like a dish. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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