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________________ बुद्धि विलास फुनि नृप केल्हरण नाम,बहुरयौं कूतिल 'नृप भए। तिनके गढ़ अभिरांम, अवलौं सोभित हैं प्रगट ॥३॥ फुनि जौंग्णसी महीप, तिनकै पाटि भए नृपति । उदैकरण अवनीप, तिनकै पटि' नरस्यंघ हुव ॥६४॥ भऐ भूप वरणवीर, तिनकै पट २ उधरण उऐ। तिनकै पटि घरधीर, चंद्रसेरिण हुव चंद्रसम ॥६५॥ तिनकै पटि भूपाल, प्रथ्वीराज' उद्यौत किय। सव दुरजन के साल, भऐ प्रजापालन निमति ॥६६॥ द्वारावति की छाप, म्हाधरम ध्वज भूप के। जोगी-तणें मिलाप, घर बैठां ही ऊ घड़ी ॥६७॥ तिनकै वारह पुत्र, भऐ महावल प्राक्रमी । जीति लऐ' सहु सत्रु, वांधी वारह कोटड़ी ॥६॥ प्रथीराज के पाटि भारमल वैठयौ' प्रति सोहै। तिनकै पटि भगवंतदास हुव ता सम और न को है। जिनके पुत्र भऐ जग मैं नृप मांनस्यंघ अवतारी। तिन दिल्लीपति पातसाहिकी सवही वात सुधारी ॥६६॥ पूरव पछिम दक्षिण' ऊतर२ च्यारयौं दिसि पंजाई । लै लै जीति भूमि भूपनि को दिल्ली तलें लगाई ॥ सवही मुलक मांहि जिनको जस अवलौ४ नर तिय गावें । तिनकी संपति साहँ५ सुभटनु को जसु कछुक सुनावै ॥७०॥ छंद : ६३ : १ कूतिल । २ भये। ३ है। ६४:१ पाटि। ६५:१ जिनक। २ पटि । ३ भए । ६६: १ प्रथीराज। ६७: १ महाधर्म। ६८:१लिये, B Includes two additional Dohas and the verse order changes accordingly. दोहा-प्रथीराज नृप जाम, पूरणमल भीवौं रतन । कियो राज परिनाम, कारणी कविन ना धरौ ॥६६॥ प्रासकरण इक पुत्र, दौरि जाय पतिसाहिएँ । नलवर राज पवित्र, लैके कीयो जीति षलु ॥७०॥ ६६ : १बैठो। २ जिन्हकं । ३पातिसाहि। ७० : १ दक्षिन । २ उत्तर। ३ पैं जाई। ४ अब लौं। ५ सहिंस। ६ सुभटन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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