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बुद्धि-विलास चहु दिसि परवत वड़े ऊतंगर, तिन परि षाई कोट सुचंग। मद्धि पुरी के सुंदर भौंन, तिनमैं वसै सुषी सव पौनि ॥५२॥ गिर परि महल भूप के वड़े, मानौं सुर-विमांन ऐ२ षड़े। महलनते गिर परि कछु दूरि, किल्ला ऐक वनायो भूरि ॥५३॥ नांम सवाई जैगढ दियौ, भूप सवाई जैस्यंघ किया। तामैं सोहत महल सुवाग, तोप कोट परि है वहु लाग ॥५४॥ राजी सवै पुरी के लोग, भूपनि-तरणी नीति-संजोग ।
ईति' भीति नहि ब्यापत जहां, दुषी न दीसै कोऊ तहां ॥५॥ छंद वरवै: तहां भऐ कछवाहे, छत्री' भूप।
तिनको कीरति जग मै, अधिक अनूप ॥५६॥
नृप वंस वर्नन दोहा : बड़े वंस श्रीराम के, कछवाहे दल साजि ।
पाऐ नरवर तें कियौ, देस दुढाहड़ राज ॥५७॥ प्रथम राज काकिल कियौ, मांचि मवासे तोड़ि। वचे भोमिया ते सवै, मिले पाप कर जोड़ि ॥५॥ तिनकै पाटि हण नृपति, भऐ मनौं हनुमान । वहुरचौं जानड़दे भऐ, तिनकै पाटि सु जान ॥५६॥ फुनि पज्जवरण भऐ नृपति, महावली सामंत ।
तिनको वल जस प्राकरम, वहु कविजन वरनंत ॥६०॥ सोरठा : भऐ मलेसी भूप, ग्यारह से इक्यांवनै ।
कीन्ही राज अनूप, वैठि पुरी अंवावती ॥६१॥ फुनि वीसल भूपाल, राज कियौ वहु' सँन सजि । तिनकै पाटि विसाल, राजे राजा राजदे ॥६२॥
५२ : १ चहुं। २ उतंग । ५३:१स्वर। २ए। ३ कछु । ५५:१ इति। ५६:१षित्री।
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