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बुद्धि-विलास हिमवत कह्यौ चौ गुणों सोय, है रनि वत तिम उत्तर जोय । षेत्र जुहरि यात चौगुणो, रम्यक उत्तर दिसि फुनि सुरणौं ॥४१॥ वीचि विराज क्षेत्र विदेह, चौसठि गुणौं ताहि गिरिण' लेह । अव परवत के कहिऐ नाम, हिमवन भरथ वोर अभिराम ॥४२॥ सिषरी भैरावत दिसि लग्यौ, महा हिमौंन दषिण' दिसि पग्यौ । रुकमी ऊत्तर दिसिकौं होय, नषिध भरथ की वोर सु जोय ॥४३॥ नील उतर दिसि ही कौं जांनि, ऐ सव भूधर षेत्र प्रमांन । तिनके भाग ऐक सौ निवै, तामै भरथ भाग यक हिवै ॥४४॥ जोजन पांच सै रु छन्वीस, इक जोजनकी कला वनीस' । तिनमैं कला लेहु षट कहै, भरथ भैरावत परमित यहै ॥४५॥ भवि सुनि भरथ क्षेत्र की वात, बिचि विजयारध परयो विष्यात । तामैं गुफा दोय तू जांनि, तिनकी तरह सुनौ सुषदांनि ॥४६॥ हिमवन परवत परि द्रह देषि, पदम नाम सिंह तनौ विसेषि । तिह तैं या दिसि नंदो दोय, गंगा सिंध' नीकसी सोय ॥४७॥ गंगा विजियारधौं भेदि, पूरव दिसि चाली विनि दि । दुतिय गुफा विजियारध माहि, सिंधु चली पच्छिम दिसि जांहि ॥४८॥ तिन" भरथ - क्षेत्रकै मांहि, षट षंड़ पड़े सु संसय नांहि । तिनमैं षंड़ मलेछ जु पांच, प्रारज्य: षंड ऐक है सांच ॥४६॥ ताकै मद्धि जांनि इक देस, नाम ढुढाहर' वसै विसेस । सरिता सरवर तामै घने, कूप वावड़ी सुंदर वने ॥५०॥ वृछ' अनेक जाति के भलैं, छहु रति मैं जे फूल फलें । तहां पुरी अंवावति वसै, इंद्रपुरी हू ते अति लसै ॥५१॥
४२ : १ गिनि। २ लेहु। ३ कहियतु । ४३ : १ दक्षिण। ४५:१ उनीस। ४७:१ सिन्धु। ४६ : १ षंडे । २ पड़े। ३ पारिज । ५०:१ ढुंढाहर । २ सरता। ३ घनें। ५१ : १ बृद्धि।
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