SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बुद्धि-विलास या विन लोकाकास मद्धि जे' ठौर है, ___तहां इकेंद्री ही उपजत नहि और है। लोकाकास तणी विधि ऐसे जांनिऐं, गृथनि के अनुसारि कही सो मानिएं ॥३०॥ चौपई : परि यह लोक जु पुरषाकार, वात-वलय के है प्राधार । तिन के नाम आदि सुनि अवै, तीन वलय ते वेढयौ सवै ॥३१॥ प्रथम घनोदधि पवन कहात, गऊ-मूत्र सम वरन लषात ।। मोटो जोजन वीस हजार, सव पिरथीतलि वलयाकार ॥३२॥ दुतिय वलय घन ताकौ नाम, मूंग वरन सोहै अभिरांम। और घनोदधि-सम लै जांनि, त्रितिय वलय तन नाम वषांनि ॥३३॥ पंच वरन' है ताको रंग, और सकल जांनौ वह ढग। पिड़२ भयो सव साठि हजार, वड़ा जोजनां मोटौ सार ॥३४॥ ऊपरि सिद्धषेत्र है जहां, इती भुटाई जानौ तहां । वात घनोंदधि फुनि घनवात, चवद्वै सहस धनुष रे भ्रात ॥३५॥ त्रितिय वात तन धनुष प्रमान, पंद्रहसैपिच्चेहरि' जांन । तिनमैं २ सिद्धन के सिर लगे, इम भाषी गनधर गुन पगे ॥३६॥ अव सुरिण मद्धिलोक-विस्तार', दीप समुद्र असंषि मुझार । तिन मधि जंवूदीप प्रधान, ज्यौं सरीर मधि: नाभि प्रमांन ॥३७॥ गोल जानि तिह वलयाकार, चहु दिसि जोजन लक्ष प्रसार।। मेर' सुदरसन ताकै मद्धि, ऊचौर जोजन लक्ष प्रसिद्धि ॥३८॥ ताकै दक्षण उत्तर' वीर, षट परवत जु परे मनु तीर। पूरव पछिम तिनके छोर, लवणोदधिमैं परे दुवोर ॥३९॥ जिनते भए सात सुभ घेत, तिनको नाम सुनौं करि हेत। भरतक्षेत्र' दक्षिण दिसि जांनि, अरावत ऊत्तर दिसि मांनि ॥४०॥ ३० : १जो। ३४:१बरण । २ पिड। ३ भयौ । ३५ : १ मुटाइ। ३६:१पिच्चेहत्तरि। २ तिनतें। ३७: १ विसतार। २ मद्रार। ३ विचि । ३८ : १ मे २ऊंचो। ३६:१ उतर । ४०:१क्षेत्र। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy