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अरिल
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बुद्धि-विलास
: मद्धि लोक चौड़ौ इक राजू सांच है,
ब्रह्म स्वर्ग वह चौड़ौ राजू पांच है ॥ मिलें होत छह तामें आधे लीजिए',
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तिनको लंबे सात गुनें जब कीजिए ॥ २४ ॥ तवें होत इकईस सवै सुनि मित जू, स्वर्ग लौं ऊंच गनौं' नचित जू । राजू साढे तीन ताहि इकईस तैं,
गुनि लीजे जैसे विधि सुनी मुनीस तें ॥२५॥ होत जु सत्तरि ऊपरि साढे तीन हैं,
मैं ही वृम्होतर तैं गिनि लीन हैं । जो वधघट' कहि प्रायो र सो घटिवधि गिनौं,
राजू होय तिहैत्रि साढे सो भनौं ॥२६॥ दोऊ लेहु मिलाय करो' इकठे सवै,
होय ऐक सौ सैंतालीस रजू जवै । तिन्हें ऐकसौछिनवै मांभि मिलाइए, रजू तीनसैतेतालीस तामैं जीव अनंत भरे यम मांनिऐं,
वताइऐ ॥२७॥
ज्यौं घट भरचौ घिरतसौं त्यौंही जानिऐ । जांन - पनौं लषिवो है केवल ग्यांन मैं,
श्री जिन भाषी सो कीजे सरधां नमैं ॥२८॥ ताही के मधि त्रसनाड़ी' जु कहात है,
ऊंची चौदह राजू
सवै विभात" है ।
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कही,
लंबी चौड़ी इक इक राजू ही सजीवनि की याही
मैं उतपति सही ॥२६॥
२४ : १ अरिल छंद । २ यक । ३ लीजिए । २५ : १ गिनौ ।
२६ : १ घटिबधि । २७ : १ करो । २६ : १ नाडी ।
२ श्रायौ ।
२ एक । २ विष्यात ।
३ Same as
३ यक एक ।
४ गुनें । ५ कीजिए ।
१ ।
४ तिहतरि ।
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