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________________ ४ ] अरिल १ बुद्धि-विलास : मद्धि लोक चौड़ौ इक राजू सांच है, ब्रह्म स्वर्ग वह चौड़ौ राजू पांच है ॥ मिलें होत छह तामें आधे लीजिए', Jain Education International ४ तिनको लंबे सात गुनें जब कीजिए ॥ २४ ॥ तवें होत इकईस सवै सुनि मित जू, स्वर्ग लौं ऊंच गनौं' नचित जू । राजू साढे तीन ताहि इकईस तैं, गुनि लीजे जैसे विधि सुनी मुनीस तें ॥२५॥ होत जु सत्तरि ऊपरि साढे तीन हैं, मैं ही वृम्होतर तैं गिनि लीन हैं । जो वधघट' कहि प्रायो र सो घटिवधि गिनौं, राजू होय तिहैत्रि साढे सो भनौं ॥२६॥ दोऊ लेहु मिलाय करो' इकठे सवै, होय ऐक सौ सैंतालीस रजू जवै । तिन्हें ऐकसौछिनवै मांभि मिलाइए, रजू तीनसैतेतालीस तामैं जीव अनंत भरे यम मांनिऐं, वताइऐ ॥२७॥ ज्यौं घट भरचौ घिरतसौं त्यौंही जानिऐ । जांन - पनौं लषिवो है केवल ग्यांन मैं, श्री जिन भाषी सो कीजे सरधां नमैं ॥२८॥ ताही के मधि त्रसनाड़ी' जु कहात है, ऊंची चौदह राजू सवै विभात" है । 3 कही, लंबी चौड़ी इक इक राजू ही सजीवनि की याही मैं उतपति सही ॥२६॥ २४ : १ अरिल छंद । २ यक । ३ लीजिए । २५ : १ गिनौ । २६ : १ घटिबधि । २७ : १ करो । २६ : १ नाडी । २ श्रायौ । २ एक । २ विष्यात । ३ Same as ३ यक एक । ४ गुनें । ५ कीजिए । १ । ४ तिहतरि । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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