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________________ बुद्धि-विलास कवित्त जेतक विलायत मैं ऐक: उमराव ताके, अन्योक्त': तेती वीचि पांडवन मांडयौ कुरषेत है। कहै 'कवि गंगधर' प्रांगन को जैसौ लेषौ, तैसैं कीन्हें सात हैं समुद्र सरासेत है। ऐती भूमि काकै भई कौंने पातसाहि लई, जेती यह पातसाहि' लई अर लेत है। मेरै जांनि राजा मान तोरि तोरि पासमान, जोरि जोरि जमीत जलालदी कौं देत है ॥७१॥ पुन कवित्त : काहू के करम पातसाही उमराई राई, ____ काहू के करम राज-राजनिको नेत है। काहू के करम हय हाथी परगर्ने पुर, काहू के करम हेम होरनि कौ केत है ॥ हरि हरि' जोई जोई जाही के लिलाट लीक, सोई सोई प्रांनि इंह दरवारि२ लेत है। कूरम नरिंद मांनस्यंघ महाराजा, . तेरे करके भरोसे करतार लिषि देत है ॥७२॥ पीछे तौं न होयगौ' जुगति यह जांनियत, कीन्हौं जव सेत राम हेत जाको नल है। कूरम नरिंद पुरषारथ की सीम सुनें, जाके भुजदंडनि मैं भीमकोरे सौ वल है। पूरव की वोर छित छोर लौं विरचि वीर, काटि काढ्यौ अमित पठाननि कौ दल है। लोहू भरयो घरग पषारयौ मांनस्यंघ, भयौ तव तें सुषारौ मनौं सागर को जल है ॥७३॥ ७१ : १ अन्योक्ति। २ जेतिक । ३ एक। ४ उमराय। ५ अकवर । ७२ : १हर। २ दरबार। ३ करतारु । ७३ : १ हौयगो। २ भीमको सौ। ३ बल । ४ षडग। ५ मानौं। * The author means that this couplet has been composed by some one else. The word has nothing to do with a ta alankara. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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