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________________ १४४ ] बुद्धि-विलास उतपति सु जिम कारण वहुरि वसु-ग्यांन-धारी मुनि भये । कोनौं सकल तिनको कथन पद कोटियक घटियक-ठये ॥ षष्टमां सत्य प्रवाद मैं अक्षर सथांनक पाठ हैं। वे-इंद्रियादिक जीव की जो वचन-गुप्ति सु पाठ हैं ॥१२१३॥ दोहा : संसकार तिनको कह्यौ, पद ताके सव होय । ऐक कोटि फुनि लाष षट, वरनें हैं मुनि लोय ॥१२१४॥ सप्तम आत्म-प्रवाद मैं, वरन्यौं आत्म-स्वरूप । पद है कोटि छवीस तसु, वरनन अधिक अनूप ॥१२१५॥ छंद गी० : अष्टम सु कर्म प्रवाद मैं सब कथन कर्मनि को कहैं। उपसम उर्दै सु उदीरणां फुनि निर्जरा अरु वंध हैं। पद कोटि यक परि लाष अस्सी जांनिऐ सव सिंह तनैं । फुनि पूर्व-प्रत्याष्यांन नवमैं कथन गुर असैं भनें ॥१२१६॥ दोहा : रूप-दऱ्या-परजाय कौ, प्रत्याष्यांन सुभाष । वरन्यौ तिनको निश्चलन, पद चौरासी लाष ॥१२१७॥ छौंद गी० : विद्यान-वाद सु जानिऐं, दसमैं सु मद्धि वषांनिऐं। विद्या बड़ी सत पंच है, सप्त सै छोटी संच है ॥१२१८॥ अष्टांगनि-मत जु ग्यान है, पद कोटि ग्यारह मांन है। अव सुनहु पूरव ग्यारऊ, कल्यांन-वाद सु वरनऊं ॥१२१६॥ चौवीस जो तीर्थेस है, चक्री जु वारह वेस है। वलि वासदेव जु गाईऐ, प्रति वासदेव वताइऐ ॥१२२०॥ नव नव कहे तिनको कथा, सौधर्म इंद्र तनी यथा । तिनु पुन्य की महिमां कही, पद कोटि छब्बीसहि सही ॥१२२१।। वारमा प्रांरणावाद मधि, अष्टांगवैद-विद्या प्रसिधि । गारुडी विद्या और है, फुनि जंत्र-मंत्रन वोर है ॥१२२२॥ पद कोटि यक प्रव जांनिएँ, परि तीस लाष वषांनिएँ। फुनि वाद-क्रिया विसाल है, तेरमौं पूरव भाल है ॥१२२३॥ ता मद्धि वरनन छंद कौं, है अलंकार अमंद को। व्याकर्ण आदि सु जांनिऐं, पद कोटि नव सव मानिऐं ॥१२२४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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