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________________ बुद्धि-विलास [ १४३ अनुतरदसांग सु नवम मैं इक इक इक' तिथंकर के भये। वार मुनी दस-दस सवै उपसर्ग सहि स्वरगनि२ गये । अनुतर विमाननि माझि ते पहुंचे अमर-पदई लही। पद वारणवै लषि सहस चव चालीस भवि जानहु सही ॥१२०६॥ अरिल : प्रश्नव्याकरण-अंग दसम वरनन यहै, नष्ट-मुष्टि इत्यादि प्रश्न-उत्तर कहै। पद वांगवै सु लक्षि सहस सोलह भने, __ताही के अनुसारि जगत फैले धनें ॥१२०७॥ है विपाक-सूत्रांग ग्यारमौं जानि तू, ___ कर्मनु तणी उदै उदीरणां मानि तू। फुनि है सत्ता कथन तास पद कोटि ऐ, ___ता लषि नव असी लेहु भवि जोटिए ॥१२०८॥ दोहा : यह तो ग्यारह अंग कौ, कीन्हौं कछुक वषांन । अव चौदह पूरव तरणौं, वरनन सुनहु सुजांन ॥१२०६॥ छद गी० : उतपाद पूरव प्रथमंही ता मद्धि कथन अनादि का। सव ही पदारथ का कियो उतपाद व्यय ध्रव आदि का ॥ पद कोटि इक' ताके कहैं फुनि दुतिय है अनायरणी। तामैं कथन अंगनि तणां है अनभूति यहै सुणी ॥१२१०॥ पद लाष छिनवै जांनि ताके बहुरि पूरव तीसरा। वीर्यान-वाद सु जांनि तामैं यह' कथन' सव नोसरा ॥ वलिदेव तीर्थंकर सु चक्री आदि को 'वल वरनयो' । पद लक्ष सत्तरि भये ताके रहहु सो जग मैं जयो ॥१२११॥ अस्ति-नास्ति-प्रवाद मैं जीवादि वस्त अनंत हैं। ते है कि नाही यह चतुर्थम मैं कही भगवंत हैं । पद साठि लक्ष सु कहे फुनि पंचमौ ग्यांन प्रवाद है। वसु-ग्यांन को तामै कथन कोंनौं धरै मरजाद है ॥१२१२॥ १२०६ : १ इक only । २ सुरगनि । १२१० : १A यक। १२११ : १ कथन । २ यह। ३ 'बरनन वयो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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