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________________ अरिल : दोहा : रिल : बुद्धि विलास दोउ सम जो होय, नपुंसक' उपजहीं, Jain Education International उपजन की यह रीति, सकल जानौं सही ॥ ११५६॥ [ १३७ सुरोदये मतेन वर्नन सूरजस्वर' पुरष नारि चंद्रस्वर, २ करत जु रिति तिह सम होत है पुत्रवर | दोऊ हूँ विपरीत पुत्रिका जांनियौं, यहै स्वरोदय युक्ति कहो सो मांनियाँ ॥११५७॥ नरनारि ह्न सूर्यस्वर, तौं ह्र वीरज' - नास । होय नपुंसक दुहु तरणौ हूँ स्वर चंद्र- प्रकास ॥११५८ ॥ रिति के दिन तें दिन गर्ने, धरै गर्भ जो कोय | सम दिन हृतौ पुत्र ह्न, विषम पुत्रिका होय ॥११५६ ॥ अथ गर्भनांम - संग्या-वर्नन ११५६ : १A निपुंसक । १९५७ : १ सूर । २ पुरष । ११५८ : १ वीरिज । प्रथम रात्रि हो गर्भ धरत है वांम जो, कलवल कहिऐ तास गर्भ कौ नांम जो । पंच रात्रि के गये बुदबुदा कहत हैं, पक्ष एक के गऐं अंड ह्न रहत हैं ॥११६०॥ मास गये निकसत अंकूरा सिर तनें, उर उपजत है मास दोय वीतें भनें । तीन मास जव जांहि उदर जव होत है, मास चतुर्थम साषा धरत उदोत है ॥ ११६१॥ अंगुरी नष पंच मैं नोकसै अंग मैं, रोम द्रिष्टि षष्ट मैं प्रगट ह्रसंग मैं । सव ही प्रांगोपांग सप्त मैं सुद्ध ह्र, वंधन तरी उतपति सरद हैं सुवुद्ध ह्वं ॥ ११६२ ॥ नवमैं दस मैं मांसि पवन के साथि जू, निकसि उदर तें वाहरि वालक श्रात जू । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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