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________________ १३४ ] बुद्धि-विलास कवित्त : वांहमी प्रौ सुंदरी दो वालिका कहावै ऐही, भगवती राजीमती द्रोपदी वतात हैं। कोसल्या' मृगावती रु सुलसां जू सीतारांनी, ___ सुभद्रा सिवा सु कुंती सीलवती गात हैं। दमयंती ताकौ नलदयता धरचौ है नाम, पद्मावती चंदना सु मरुदेवी मात हैं। एही सव सोलह सती कहैं जिनागम मैं, जयवंती रहौ सदा जग मैं विष्यात हैं ॥११३१॥ अथ तीर्थंकर सिंह प्रासन तें मुक्ति गये सो वर्नन छद पद्धरी: पद्मासन तें जिन रिषभ देव । प्रभु वासपूज्य फुनि नेम ऐव ॥ रहि सेस सवै कायोतसर्ग । धरि ध्यान लह्यौ सुष मोषि-वर्ग ॥११३२॥ अथ तीर्थंकर कंवारे मुक्ति गऐ तिनके नाम' प्रिभु पाँच कुमारे गये मुक्ति । जिन वासपूज्य मलि नेमजुक्ति ॥ श्रीपार्श्व जिनेस्वर३ वर्द्धमान । औरनि तिय तजि सिव किय पयांन ॥११३३॥ अथ श्रावक के सप्तदश नित्ति-नेम-वर्नन सोरठा : नित्ति करै मरजाद, नित्ति नेम ताकौ' कहै । श्रावक धरि प्रहलाद, करि न करै वोछी अधिक ॥११३४॥ छद: भोजन जे नित्ति करांही, कैसौ फुनि के विरयांही। षटरस मैं जो रस लेणां, सो लेहु और तजि देणां ॥११३५॥ पय-पांनी आदि जु पीवो, कुंकमादि-विलेपन कीवो। फूलन की गंध जु ले हैं, तांबूलादिक हू हैं ॥११३६॥ ११३१ : १A कोसल्लया। ११३३ : १ तीर्थंकर कंवारे मुक्ति गए सो बर्नन छंद पद्धरी। २ जिन। ३ जिनेसुर । ११३४ : १ जाकौं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www. www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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