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________________ बुद्धि-विलास [ १३३ प्रति-नारायण-नांम अस्वग्रीव तारक फुनि मेर' जु सोभिता, हैं निसुंभ कैटभ मधुसूदन वलिहता । रावण जरासिंध लौं नव ए जांनिए, प्रति-नारायण इनके नाम वषांनिऐ ॥११२६॥ नव नारद-नांम छप्पे : प्रथम भीम अरु महाभीम फुनि रुद्र कहावहि । महारुद्र औ काल महाकाल जु जग गावहि ॥ दुरमुष है इक नाम नरकमुष कहै एक कौं। एक अधोमुष नाम रहै' अति गहैं टेक कौ ॥ नव भये सकल नारदमुनी, तिनकौं कलह सुहात अति । भव पाय अनेक सु जांहिंगे, ऐहू जिय पंचम सुगति ॥११२७॥ ग्यारह रुद्र-नांम भीम सुवलि जितसत्रु वहुरि विस्वानल भाषिव । सुप्रतिष्ट अरु अचल पुंडरीक हि अभिलाषिव ॥ अजितंधर जितनाभ नाम यक' पीठ वतांवहि । वहुरि सात्वकीपुत्र रुद्र ग्यारह जग गांवहि ॥ सव भये ऐक सौ साठि नव, जोव मुक्तिगांमी प्रवल । सिव गये जांहिगे अनुकरमि, वषतरांम वंदत सकल ॥११२८॥ दोहा : तिनमैं सांति कुंथ अर, पदई पाई तीन । तीर्थकर चक्री वहुरि, कामदेव गुन लोन ॥११२६॥ अथ सोलह सती-नांम दोहा : सोलह सती कहात हैं, तिन हूं के जो नाम। कहे जिनागम मांहि सो, सुनि लीजे अभिराम ॥११३०॥ ११२६ : १ मेरु। २ बलिहता। ११२७ : १ रहत। २ पाइ। ११२८ : १ इक। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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