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बुद्धि-विलास
[ १२७ असे ब्रह्मलोक ते 'प्रायो, जानि नाम ब्रह्मा ठहरायो।
सव देवनि परिनाम कहावै, ब्रह्मा प्रादिस्वर जग गावै ॥१०८६॥ छप्पै : ब्रह्मलोकतै चये भये श्री रिषभ तिथंकर' ।
करमभूमि कौ चलन सिषाय' व सकल नारि नर ॥ फुनि गहि केवल-ग्यान प्रभू कमलासन ठांनै । भऐ चतुर्मुष तवै च्यारिहौं वेद वषांने ॥ तिनके हैं नाम अनंत तसु पार कौन कविवर लहैं।
भनि वषतराम या विधि इन्हें सकल आदि-ब्रह्मा कहैं ॥१०६०॥ सोरठा : सोही रिषभ जिनंद, च्यारि वेद मुषतें कहे।
दिव्य ध्वनि' मद्धि अमंद,तसु वरनन गनधर कियो ॥१०६१॥ कवित : प्रथमहि कह्यौ प्रथमांनुजोग वेद तामैं,
सठि सलाका पुरषों की कथा वरनी। दूजो करनांनुजोग वेद तांकै मद्धि भाषी,
लोका-लोक सिथिति सुनत सुभ करनी ॥ तीजों चरणंनुजोग वेद तामैं मोषि पंथ,
साधि करि वरै वह मुक्ति रूपी तरनी। चौथौ वेद दव्यंनि' जोग तामैं भाषी कथा,
षट-दर विनु की करम थित हरनी ॥१०६२॥
अथ भिन भिन वेद निरनय चौपई : तीर्थकर फुनि माता पिता, कामदेव हू जानौ यता' ।
सवकौं गिनौं छिन भये, चक्रवति द्वादस२ वरनयं ॥१०९३॥ नव नव नारद हरि घति' हरि, नव वलि ग्यारह सिव सुभकर।। चौदह कुलकर सवकी कथा, प्रथम वेद मैं वरनी यथा ॥१०६४॥
३ लहि ।
१०६० : १ तिथंकर। २ दिषाय। १०६१ : १ धुनि । २ मदय । १०६२ : १ दानु। १०६३ : १ इता। २ द्वादश । १०६४ : १ प्रति । २A ज्यथा।
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