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बुद्धि- विलास मुनिसुवृत तन सोभित स्यांम, पिता भये सुभमित्र भिराम । कछछव चिन्ह सु पदमां मात, राजगृही मैं जनमें तात ॥१०७७॥ नंम्मिकाय सोना सम वनी, विजय पिता विमात सुजनो। उतपल चिन्ह अधिक सोभंत, मिथला' मैं जनमें भगवंत ॥१०७८॥ नेम प्रभू तन स्यांम कहंत, समदविजय जू पिता महंत । संष चिन्ह सिव देवी माय, पुरी द्वारिका जनमें जाय ॥१०७६॥ पार्श्वनाथ तन हरित वषांनि, आसासेन पिता तसु जांनि । वामां मात चिन्ह है नाग, जनमें वारणारसी सभाग ॥१०८०॥ वर्द्धमान तन कनक समान, पिता सिधारथ दुति सम भांन । सिंह चिन्ह त्रिसला उर धरे, कुंडलपुर के मध्य' अवतरे ॥१०८१॥ प्रैसैं ये जयवंते रहैं, फुनि कैसे हैं सो कवि कहैं। जग अघ हरि तारत विन कांम, वषतरांम किय तिन्है प्रनाम ॥१०८२॥
अथ सप्त प्रकार माला जपिवा को कथन दोहा : मोती मूंगा रतन फल, रूपा सूत सुवर्ण ।
सप्तमाल जिनमत कही, जपि जिन प्रसरण-सर्ण ॥१०८३॥
अथ प्रथमांनुजोग आदि च्यारि वेदनिरनय कथन चौपई : आदीसुर यम ब्रह्मा भये, वेद च्यारि जिन जो निरमये।
नाम भेद मत भेदहि प्रांनि, लरत लोग अव झगरो ठांनि ॥१०८५॥ जुक्ति एक सुनि भवि हिय धरि हैं,सरवारथ सिधि स्वरगन' परि है। तहां देव ऐका भवतारी, वसत सकल जांनौं ब्रह्मचारी ॥१०८६॥ या विधि सरवारथ-सिधि नाम, ब्रह्म-लोक भाष्यौ अभिराम। पूरव भव प्रभु लीन्हौं वास, चय किय मद्धि लोक परकास ॥१०८७॥ नाभि पिता कुलकर चउदहें, मरुदेवी माता गुन गहें। तिनकै रिषभदेव अवतरे, मति श्रुति अवधि ग्यान करि भरे ॥१०८८॥
१०७८ : १ मिथुला। १०८१ : १ A मधि। १०८६: १स्वर्गनि। २७भचारी।
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