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बुद्धि-विलास जूवां कवहु न लिऐ, चौपरि आदि अनेक । ज्वाष्यौ होड़' इजारड़ा, ऐहू तजौ कितेक ॥६९४nt वेस्यां चोरी नारि पर, ए अणुवृत के मांहि । तजवी भाषी सो तजौ, सोषहु दीजे नांहि ॥६६५ut मद दारू मन वचन तन, याकौं तजि तैह तीक । मादिक वस्त न पाइऐ, निज पर परै न ठीक ॥६६॥ मांस षांन तो त्यागि फुनि, देषौ छुवो न काहु । कंद हरी वोधो जु अन, इन दै आदि न पाहु ॥७॥ करि सिकार जिय मति हने, काहू भांति न कोय । चाकर चौडै प्रीति करि, छांनै रोकि न लोय ॥८॥ आप धरोहरि जो धरै, ताको मरण न चिति ।। यह सिकार ही जांनियौं', व्यौपारी तजि मितIEEET असे सातौं विसन ये, निज साधन तौ त्यागी। दीजिए न उपदेस हू, भवि जिनमत अनुरागि ॥१०००॥ पंच अणुवृत पालि के, सप्त विसन तजि देहु । स्वर गति लहि अनुक्रमि लहौ, सिवगति नहि संदेहु ॥१००१॥ संयम' जप तप वृत नियम, जो जिनमत अनुसार । सुनि श्री गुरमुष तै सदा, सधै सु साधि अपार ॥१००२॥ पुन्य धर्म वहु विधि करहु, धरि हिय मांझि हुलास ।
जातै साता व उदै, होय असाता नास ॥१००३॥ कवित साता ही के प्रायें दौरे प्राव सारे नांती गोती, दीर्घ
पैरी पाऊं लागै धेरै तौहू नांहि जाते हैं। मात्रा : रंभासी ह नारी धारै हीरा मोती सोनां सो तौ,
हासी के-के हीऐ लागें वोढें पीले राते हैं।
९६४: १ और। 888 : १ जांनिको। २ मिति । १००२ : १A संजम । १००४ : १दीरघ ।
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