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________________ ११४ ] दोहा : अथ तियतु कौं उपदेस वर्नन श्रावग - कुल मैं प्राय कैं, मारि लीष हु न जोय । प्रस्ति ऊंन भोजन तरणी, ठौर न ल्यावो कोय ॥६७३ ॥ ली प्रति प्ररुं उनकी, जो न मांनिहौ सीष । तौ भव भव मैं वोझ ह्र, भले मागिहौ भीष ॥८०॥ श्रावग के घर मैं वहुरि, घर चिंडाल के मांहि । यन वार्तानि कौ भेद है, सो सठ मानत नाहि ॥८१॥ अस्ति रसोई ल्यांन कौ, तजिवो मांनें वेद । Jain Education International बुद्धि-विलास श्रावग प्ररु चिडाल घर, तौ कछु रह्यौ न भेद ॥ ८२ ॥ वरत करें त्यागे श्रधिक, हरित काय दे आदि । लीषह तन जो नां तजैं, तौ सव किरिया वादि ॥ ८३ ॥ असत्ति वृति' है वचें जीव झूठी श्रथ सत्ति वर्तन दूसरो, झूठ न बोलहु मित । कहें, तौ वोलिये + (976-983) does not occur in B. ९८४ : १A विरति । २ तू बोलि । ६८५ : १ चोरी बर्नन । ६८८ : १दीज्ये । २A भात । चोर्य व्रत वर्नन ' तीज व्रत चोरी तजरण, चोरी करहु न भोलौ लेषा मैं न करि, पडी वस्त्र तजि धरोहरि धरि मरि गयो, सिंह धन घरहि न अनाचार लागै सु अव, तिनकी है वहु चोरी की ल्याई वसत, लेहु न राज मनाई सों तजौ, भांति अधिक चोरी तरणी, हक्क हिसावी वाजिवी, लीजे दीजे' भ्रातरे ॥८८॥ थौडे घाटि न कवहू कौ लौं कहिये वात । ३ A नचित । निचित ॥ ८४ ॥ For Private & Personal Use Only कोय । लोय ॥८५॥ राषि । साषि ॥ ८६ ॥ मोलि । तोलि ॥८७॥ www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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