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________________ ११२ ] बुद्धि-विलास इन आदि जु हिंसक जाति जीव, तिनको पालरण तजिये सदीव । मैंना सूवादिक जीव कोय, मत्ति राषहु पिंजरा मांहि गोय ॥९६४॥ वांध्यौ न राषि जिय करौ पोष, वंदोषांने को लगै दोष । पसु और परु नर सम्हालि, वेचे मति कवहू पालि-पालि ॥६६५॥ पसु आदि सवारी कौं रहै सु, तिनतें हिंसा हो वो तजै सु। गाड़ी पर ऊंट सु वैल प्रादि, मरजाद सिवाय न वोऊ लादि ॥९६६॥ भूषे गरमी ते थक कोय, मारिए नहीं चिडाल होय । धरती न षोदिये विनां काम, जल नाहक नांषहु मति भिराम ॥६६७॥ विन काजि आगि वालिये नाहि, विन गरम वीजनां क्यौं हलांहि । जे वनसपती है दोव प्रादि, विन काजि चूंटवो' करि न वादि ॥९६८॥ तरकारी फल अरु पत्र जाति, विन सोधी पाहु न निसि प्रभाति । फूलन की तरकारी जु होय, मति षाहु' हरी कवहू न कोय ॥६६॥ डोडा रु सुपारीफल' सु आदि, सारे न पाइऐ कवहु वादि । ९६८ : १ चूटिबो। ९६६ : १षाय । ९७० : १ सुपरीफल। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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