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बुद्धि-विलास कहै व्याह वेटा' तरणौ वेगि कीजे, सुता के अवै हाथ पीला करोजे । तिहारो जु वैरी अवै पासि प्रायो, लड़ौ याहि मारो चहौ चैन पायो ॥५०॥ बड़ो वृछ' है याहि वेगे कटावो, भले षाट चौकी किवाडै वनावो। पड्यौ२ है कजोड़ा वुहारी न दीजे, भली वावड़ी ऐक प्राछी न कीजे ॥६५१॥ तिया कौं कहै सीस गुंथाय लीजे, इन्हैं' आदि ए सीष काहू न दीजे । कहौ तौ कहौ दांन पूजा करावो,
करौ वास ौ देहुरा कौं वनावो ॥६५२॥ दोहा : मांगे हू दीजे नही, जातें हिंसा होय ।
तिनहूं के कछु नाम ये, सुनिये लज्जा षोय ॥६५३॥ छद भजंग प्रयात : मगे बैन कौं राछ पाछे वनावें,
करावै प्रसंसा भलै चैन पावै । हला मूसला ऊषला देत मांगे, कटारी छुरी षेट वंदूक सागै ॥६५४॥ कमांणौं क्रपाणौं कडाही गंडासी, कुसी चावका जेवड़ा मूंज फासी। भले अंकुसा नांथ आछी नकेलैं, नई पोटली चांम की ले सकेलें ॥९५५॥ पुरल्ला' पुरप्पा विसोले सु नाड़ी, तई सांकले डांग घोटा कुहाड़ी। चको फाहुड़ा पार प्रौ दांतला जे, वली आगि औ लाकड़ी ऊपला दे ॥९५६॥
९५० : १ वेटी। ९५१ : १ वृछि। २ परयौ। ३ कजोरा। ४ करीजे । ९५२ : १ इन। ९५५ : १ कढाई। ६५६ : १षरल्ला।
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