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१०८ ]
दौहा' :
दोहा :
बुद्धि-विलास
नए बनाओ विव प्रभु, फुनि प्रतिष्टा कराय । चव विधि संघ जिमाय भवि, तीर्थनि संग चलाय ॥२७॥ धन पाये कौ फल यहैं, दांन पुन्य जिन-धर्म । इनमें धन वहु षरचि हौं, तौ पैहौ सुष मर्म ॥ २८ ॥ श्रथ सूवा सूर्तिग वर्नन
सूवा सूर्तिग हू तरणी, कछु यक सुरिणयें वात । मरजादा माफिक करें, मिटै तास उतपात ॥ ६२६ ॥ सूवा की यह विधि तिया, करें चतुर्थ सनांन । तव तैं मांस जु तीसरे, जात जु गर्भाधांन ॥ ९३०॥ श्राव नाम ताकौ कहै, इक सनांन सुद्ध । षष्ट मैं, जात सु सुनहु सुबुद्ध ॥३१॥
मांस पंच' मैं नांम पात ताकौ कहै, सूवो दिन छह पांच । गिनिऐ न्हांऐ सुद्ध ह्व, यहै मांनि तुव सांच ॥ ३२ ॥ होय सातवें आठवें, नवें सु कहि परसूति ।
ताकौ सूवो दस दिनां, फुनि न्हाऐं सुध भूति ॥९३३॥ सूतिग वर्नन
वालक मूवो होय तौ, सूतिग गिरिण दिन एक i जौ बालक पौढौ षिरं, तौ त्र्य दिनां गिरक ॥ ६३४ ॥
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वड़ो पुरिष' कोई षिरं, तै ताकौ सूतिंग ऐहु । दिन द्वादस और क्रिया, लोक प्रसिद्ध यातें यह वरनन कियो, मुनि कौं भोजन सूवा सूतिग मांहि तुम, भूलि न देहु ऐ तौ श्रावग के कहे, किरिया फुनि तामैं तें श्रावे जु सधि, अव सुनिए श्रावग धरम,
तात अघ नसि स्वर्ग लहि, फुनि सिवगति कौं जाय ॥३८॥
६२६ : missing ९३१ : १ पाँच । ६३२ : श्रुद्ध । ६३४ : १ Amissing. ६३५ : १ पुरष ।
करेहु ॥३५॥
दांन ।
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सुजांन ॥ ३६॥
श्राचार |
सो सव साधहु सार ॥३७॥ कछु यक कहौं वनाय ।
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