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________________ बुद्धि-विलास [ १०७ दोय पहर दिन जव चढे, मद्धि घड़ी घटि दोय । तव तें सांमायक करै, च्यारि घड़ी लौ लोय ॥१८॥ वहुरि उतावलि होय को, तौ लषि व्यौंत विचारि । नाम लेहु प्रभु को भलैं, घड़ी ऐक ह च्यारि ॥१६॥ या विधि ही संध्या तणौं, सांमायक तू ठांनि । घड़ी दोय दिन वहुरि निसि, घड़ी दोय लै मांनि ॥२०॥ निसि वीत यक पहर जव, तव गृहस्थ जो होय । निज तिय रिति सेवन करै, पहलै करहु न कोय ॥२१॥ तामैं तें परवी दिवस, चौदसि आ3 जांनि । त्यागै निज पर सव तिया, ते जग मैं गुनषानि ॥२२॥ पर-तिय कौ तौ जांनि के, करै सर्वथा त्याग । परवी दिन फुनि दिवस कौं, निज तिय तजि वड-भाग ॥२३॥ यह तो विधि तुमकौं कही, फुनि सुनिएं भविराय । घर मैं धन वह होय तौ, जिन-मंदिर चुनवाय ॥२४॥ फुनि पूजा के उपकरण, नऐ नऐ करवाय । झारी प्याला आरती, कलस जलौटि वनाय ॥२५॥ ठौंरगां पर धूपायरणां, झांझि झालरी थार । चंदवा आदि वनाय करि, धरि देहुरा मझार ॥२६॥ ६१८:१A includes the following additional lines between (917-918) without disturbing the verse order. तापरि साषि धर्मोमृत क्रतेन छप्पै विरल मूंग उड़दादि धान्य दो दालि तणे जे। काचे दधि तक्र मैं मेलि नहि षांरण भरणे जे॥ प्रात गले के मद्धि जीव वहु उपजि मरे हैं। धर्मामृत श्रावकाचार मैं वरन करै हैं ॥ मेवादि तरणी दो दालि ह तिनको विदल नहीं धरयौ। भनि वषतराम असैं सुगुर गूंथनि मैं वरनन करयौ ॥१॥ दोय दालि कौ धान्य फुनि, दुग्ध मिलाय न पाहु । पत्र जाति जे हरित हैं, चत्रमांस तजि साहु ॥२॥ Jain Education International ernational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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