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१०६ ]
बुद्धि-विलास
दोहा :
तुछ फल पीलू षणां ऊंवरा कळूवरा,
सु वड़वाला पीपला ऐ तनक न ल्याइए। श्रावग कौं यनको सरव त्याग कह्यौ,
ऐही वाईस अभष्य जिनमत मैं वताइऐ ॥६०७॥ जो सधि आवै तौ भलैं, मौंनि और अंतराय । 4 भो सकल हरीनु की, मरजादा करि षाय ॥६०८॥ धात-पात्र मैं जीमिवो, भाष्यौ' है उत्तकिष्ट । जो न मिले तो जीमणौं, पातलि हूँ मैं सिष्ट ॥६०६॥ ता पातलि के भेद है, सूकी दीजे' त्यागि । तामैं जीव पड़े घर्ने, जाला रहै जु लागि ॥१०॥ व्यौपारी जो होय सो, करै भलौ व्यौपार । चाकर करि सुभ चाकरी, दर्ग्य उपावो चार' ॥११॥ पैसा परे पसेव कौं, लाय रसोई मांहि । और तरह कौ होय सो, यामैं खरचौ नांहि ॥१२॥ तजहु प्रथांरणी तेल को, फुनि वजार को चून । छाछि पहर सोला पर्छ, षांण तरणी करि मूंन ॥६१३॥ भुरडी कहैं जवारि की, छोला देहगी होय । प्रादि वाजरे के सिरा, होला करहु न कोय ॥१४॥ दोय ढालि ह नाज की, ता संगि दही न पाय । यातै वरजी है गुरनि, गलै जीव पड़ि जाय ॥१५॥ होय चलित-रस जो वसत, फल दें प्रादि प्रहार । वहुरि मिठाई हूं चलित, षावो तजौ प्रकार ॥१६॥ तजौ ऊंट का दूध की, षीर षांरण भविराय । यामैं दोष लगै अधिक, हिंसादिक को प्राय ॥१७॥
९०७ : २ कठुवरा। ३ लाइए। ९०६ : १० लाप्यो। ९१० : १ दीज्ये। ९११ : १Aचार।
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