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________________ बुद्धि-विलास दया दक्षि प्रांरंगी सकल, भूषे रोगी जांनि । मांहि । नाहि ॥८६॥ वालक वूढा तरुरग कौं, जथा - जोग्य' दे दांन ॥ ८८ ॥ ए च्यारयौं ही दक्षि हू, कहे जिनागम करि विचार अरु दीजिए, यामैं दूषन दत्ति समै लषि दीजिए, दांन सु निति प्रति देहु । यथा-सक्ति तव श्राप निज, भोजन सुद्ध करिह ॥ ००॥ जिनमत के अनुसार तैं, कहें दांन अरु दत्ति । भाव सुद्ध करि दीजिए, सुभ फल है' यथा-सक्ति दे दांन फुनि, निज जीमत ऊजल धोवति वेठि करि, साध मौंन' सत्ति ॥ ६०१ ॥ सुद्ध । सुवुद्ध ॥१०२॥ कवित कंद मूल वोला निसी भोजन तुषार विस, मि. उ.: संधांरण सु-घोल' वडा कबहू न षाइऐ । मधुमद मांषन चलितरस मांटी मांस, वेंगरण श्रजांरग फल गाइ ॥ वहु-वीजा मौंनि वर्नन वतांहि । कहांहि ॥९०३॥ सात | वात ॥ ६०४ ॥ भौंहा रेषे' पै नही, अंगुरी ते न नांहि हलै न षंषारिये, सोही मौंन बहुरि जीमतां पालि भवि, अंतराय ये मांस मृतक मद रुधिर फुनि, हाड़ चाम छह ए तौ नांहीं देषिऐ, फुनि जाको ६ थाली मैं प्रावै तऊ, मुष मैं देहु न जिनमत मैं तजिवो कहे, ऐ वाईस अभव्य । तिनकौं लेहु विचारि भवि, षावो तजौ प्रतष्य' ॥१०६ ॥ नेम । केम ॥ ९०५ ॥ ८६८ : १ A जोगि । ६०१ : १ह्र है । ६०२ : १ मौनि । ६०३ : १ A राषे । Jain Education International ६०६ : १A पतक्ष । ६०७ : १ श्रौघोल । [ १०५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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