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________________ बद्धि-विलास [ १०३ दोहा : तिय रतिवती जु जांनि के, वतलावो मति कोय । ऐक वास तें सुध ह, वतलायें तें लोय ॥८७३॥ सपरस कीतौ कांचली, वस्त्रनि तँ इक' हाथ । रहिये दूरि सु तीन दिन, अवर सुनौं इक गाथ ॥८७४॥ वैठी सूती है जहां, फुनि भोजन जहां' कीन । सो भुव लीपै सुद्ध है, नाही रहै मलीन ॥८७५॥ वालक पीवै जो सतन, छोटे तें सुध होय । वड़े' वाल परसै जु को, न्हायें सुचि ह सोय ॥८७६॥ रितिवती' जु जिंह पात्र मैं, भोजन कीन्हौं २ चाहि । तामैं भोजन जो करै, दोष लगै अति ताहि ॥८७७॥ वस्त्र-जुक्त न्हावै वहुरि, दोय करै उपवास' । तव ताकौ दूषन मिटर, इम गुर करें प्रकास ॥८७८॥ पात्र वख रहवा' तरणी, ठौहर परसै कोय । न्हावै अपराजित जप, सतव सु तव सुध होय ॥८७६॥ सुकवि कहांलौं वरनवै, रतिवति दोष निहारि । लोक-विरुध जो औरहू, टरै सु दीजे' टारि ॥८८०॥ असी रितिवति जानियें, जो नारी घर मांहि । तौ मुनि भोजन देहु मति, अति ही दोष लगांहि ॥१॥ वरनन ताके दोष कौ, करै सुकवि अस कौंन । द्वारा पेषरण हूं न करि, ता दिनि रहु गहि मौंन ॥८८२॥ जो घर मैं ह सुद्धता, तो मुनि कौं पडगाहि । विधिवत नवधा भक्ति करि, भोजन दोजे ताहि ॥८८३॥ जव प्रहार कौं ले चुक, तव वन' मुनि कौं जाय । निज श्रावक निज द्वारलौं, आवहु भवि पहुचाय ॥८८४॥ ८७४ : १ यक। ८७५ : १ जहं। ८७६ : १ वडो। ८७७ : १ रतिवती। १ कोनौं। ८७८ : १० व पवास। २ टर। ८७९ : १ A रैहवा । ८८०: १दीज्ये। ८८२ : १Amissing | २ दिन । ३ रहि । ८८४ : १ उन । २ A पौंहचाय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jaineli www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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