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________________ बुद्धि-विलास [ ६६ दोहा : सूरज' को परकास ह, तवें वुहारी देहु । कै तौ कूटी मुंज की, के प्रति कोमल लेहु ॥८३२॥ जीव जंत कौं वस्त्र तें, पहले दोजे टालि। वहुरि वुहारी दीजिये, निज नेत्रनितें निहालि ॥८३३॥ चूल्हा की वांनी सवै, काढे लषि के जीव । फुनि पांडू पीली तरणी', चौकौ देत सदीव ॥८३४॥ चौका यात दीजिये, मृतक जीव जो कोय। लेय' विलाई आदि जिय, वामग निकसे होय ॥८३५॥ नई भूमि जो होय तौ, जलतें छिड़का देहु । जो चूनां की होय तौ, धोय सुद्ध करि लेहु ॥३६॥ लकड़ी अथवा ऊपले, सूके चूल्है वालि । वीधे ह जालनि सहित, तिनकौं दीजे' टालि ॥८३७॥ निज वा उत्तिम' जाति तै, जल मंगाइऐ सुद्ध। नीच जाति कौं भूलिहूं, छुवन न देहु सुवुद्ध ॥८३८॥ पाणी छोरणौं जुगति सौं, कपड़ा' गाढो ल्याय । हाथ अढाई दोवरा, इक नांतिरणौं कराय ॥३६॥ ले करवा तल ढांकरणौं, टपका परन न देय । कर जिवाण्यां जुगति सौं, फुनि वा जलकौं लेय ॥८४०॥ होय जहां को जल जहां, भेजि देहु भविराय । वामैं पाछी जुगति सौं, दीजे ताहि मिलाय ॥८४१॥ चंदवा चूल्है परहडै, ऊपरि इक-इक राषि । जाले जिय षोटी वसत, पड़े नही यह साषि ॥८४२॥ नाज मंगावो देषि कैं, वोध्यौ घुण्यौं न होय । ताहू कौं अति सोधिके, पोटै पीस जोय ॥४३॥ ८३२ : १ A सूरिज। ८३४ : १ तरणों। ८३५ : १० लेई। ८३७:१दीज्ये। ८३८ : १ उत्तम। ८३६ : १ कपरा। २ गाडौं। ८४०: १ तलि। २ देहु। ३ जिवाण्यौं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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