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बुद्धि-विलास
सोरठा :
चाकी ऊषल पोति के, पीसै बोटै नाज । नीच जाति के हाथ तै, ऐ न करावै काज ॥८४४॥ वहुरि चालणी छाजले, चमड़ा विन' जे होय । तिनत छारणे फटकिये, नाज सु दोष न कोय ॥८४५॥ .. विन सोध्यौ ह नाज, तरकारो धोयें विनां ।
रसोईन' मैं साज, ए मावा दीजे नही ॥८४६॥ ऊन हाड़ चमड़ा ज, फुनि षोटी जो वस्त ह। रसोईन मैं साज, कवहु न आवा दीजिये ॥८४७॥ जे घर मांहि होय, तौला हांडी फुनि चरी। तिन्हैं उघाड़ी कोय, राषि न कवहूं रांधतां ॥८४८॥ घिरत तेल जल कोय, चमड़े परस्यौ हू जु ह। ताहि न पावो कोय, वहुरि हींग को प्रादि दै ॥८४६॥ या विधि तिय सुचि ठांनि,पहरै उत्तम वस्त्र कौं। दया भाव उर प्रांनि, करै रसोई जुक्ति सौं ॥८५०॥ वहुरि पुरिष जोमरण करै, रसोईन' मैं पैठि। तौ सनांन करि के करै, ऊजल धोवति वेठि ॥८५१॥ जो सनांन परभाति कौ, करि फिरि फिरवा' जाय । तौ कटि२ तक न्हाएं विनां, सुद्ध न ह निज काय ॥८५२॥ प्रभू पूजि आवै घरां, जवै तयारी होय । सवै रसोई की सुचित, तव यम' करिये लोय ॥८५३॥ करै ग्रहस्थी षट करम, जिन विन' सरै न कोय । तिनको दोष जु प्रावसिक, जतन किये हूं होय ॥८५४॥ ताकौ दोष मिटै सु यम, सिघ सवकी कढवाय । चढ़वावै भगवंत कौं, जिन-देवल मैं जाय ॥८५५॥
दोहा :
८४५ : १ विनि। २ जो। ८४६ : १ रसोईनि। ८५० : १ A उत्तिम । ८५१ : १ रसोइन । ८५२:१A फिरिवा। २ तकि । ८५३ : १ इम। ८५४ : १विनि।
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