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________________ बुद्धि-विलास नांना विजन दधि घिरत, दूग्ध' भात पकवांन । प्रभु के मुष प्रागै धरौ, कनक थाल भरि प्रांनि ॥२०॥ पंच-दीप की आरती, जोय फेरि प्रभु पास । जीति मोहवा जे भयो, पंचम ज्ञान' प्रकास ॥८२१॥ अगुर सांम' अंवर अवर, बावन चंदन लेय। फुनि करि धूप दसांग भवि२, प्रभु मुष प्रागै षेय ॥८२२॥ श्रीफलाम्र दाडिम कपिथ, नारिंग पुंग विजोर । इन दै आदि चढाय प्रभु, पद ढिगि सरस किसोर ॥२३॥ करहु प्रष्ट द्रव्य ऐकठे, अरु नंद्यावत ठांनि । दोव साथिया सहित भवि, धरो अर्घ सुषदांनि ॥८२४॥ असें पूजा अष्ट विधि, करहु भाव करि सुद्ध । वहुरचौं पढि जयमाल कौं, अर्घ चढाय सुवुद्ध ॥८२५॥ फुनि पढि सांति जु सुमन तैं, पढों विसर्जन-मंत्र । ता पीछे दै प्रासिषा, विघन-हरन जग जंत्र ॥८२६॥ आह्वांन' (नैव जानामि इत्यादि मंत्र)२ अह्वान के पुष्प की, देहु प्रासिषा लोय । और ठौर के पुष्प तौ, विघन हरन नहि होय ॥८२७॥ वहुरि साखनि श्रवण करि, करै गुरनि की भक्ति । दया भाव राषै सदा, दान देय विधि जुक्ति ॥२८॥ अव क्रिया सुनि श्राविका, तरणी कछुक हित ठांनि । उठि प्रभाति नवकार मनि, जपै दया उर प्रांनि ॥२६॥ वहर भूमि दांतिण तरणी, किरिया जिसे प्रकारि । कहि प्रायो जो पुरिष कौं, सोही करै विचारि ॥८३०॥ चौपई : पैं निति तिरिया अर्ध सनांन, करै' सुभाषी यहै प्रमांन । प्रासुक भुव लषिक जिय जंत, मस्तगि परि जल नहि नाषंत ॥८३१॥ ८२० : १दुगध । ८२१ : १A ग्यांन । ८२२ : १ स्यांम। २ दशांग । ८२७ : १ पाहवान। २ not in B| ८२९ : १A किरिया। २ तनी। ८३१ : १ करहु । ३ पुष्प । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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