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बुद्धि-विलास
क्रिया वर्नन
निसि उन्हों अथवा छरयौ, जलतें पात्र भराय । बहर' भूमि के फिरन कौं, प्रासुक भुव मैं जाय ॥ ७८१ ॥ तामैं सी' जायगा, बरजी सुनिऐं साहु | वहर भूमि कौं भूलिहू, एती ठौर न जाहु ॥७८२ ॥ चौपाई : जहां जु' कोई देषत जांरंगों, फुनि द्वं प्रेतनि? तरण ठिकांणौं । परवत मस्तगि अरु जल मांहि, लषि के कवहू फिरिये नांही ॥ ७८३ ॥ फुनि वंवई देवल परहरिये, हलकी लीक मांहि नहि फिरिऐ । फूलनि के वृषिनु के नीचें, डाभ वगन' की ठौहर वोचें ॥ ७८४ ॥ हरी भूमि फुनि भूमि चिता की, गाय आदि पसु वैठक ताकी । श्रनि तर हूँ कहूं' ठिकांरगो, इन ठौहर मल मूत्र न ठांरणों ॥७३५॥ तलाव तें दस हाथ पर हो, करें सूत्र यह वात वतें ही । इक सत हाथ पर मल मोच, नंदी तैं चौगुरौं न सोचें ॥७८६ ॥ जलत गनिस्वर सूरज चंदा, होय मुनिस्वर ग्यान श्रमंदा | कवहू इनकों देषत जाई, मल फुनि मूत्र न मोचौ भाई ॥७८७॥ वांवें हाथि' सऊच करोजे, जल कौ पात्र दांहिनें लोजे । जौ लगि हाथनि धोवै नांहीं, तौ लगि वस्त्रनिनांहि छुवांहीं ॥७८८ ॥
दोहा :
४ ]
प्रथवा वाहरि फिरन के, वस्त्र जिते जो होय । तिन्हें जुदे ही राषिए, छवो करें न कोय ॥ ७८६ ॥ नंदी और तलाव मैं, सोचौ लेहु नमित ।
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प्रथम निवारण मलीन ह्व, अरण छांयौं जल हुंत ॥७६०॥ छां जलतें धोइए, मांटी ले निज हाथ । तामै प्रकाथ ॥७६१ ॥
सी होय सी,
मांटी तजौ
७८१ : १ बहरि । ७८२ : १ एति । ७८३ : १ ज । २ प्रेतन । ७८४ : १ उगन । ७८५ : १ कहौं ।
७८८ : १ हस्त ।
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