________________
१२ ]
बुद्धि-विलास चांडूवाड़ भेद द्वै मेल, इक कुरुंवसी कुल चंदेल । इक सोमवंस कुल चावड़ा, दोऊ मातरिण पूजे षड़ा ॥७५५॥ तीन गोत कुल गौड़ उजेरा, गोधा सरवाड्या अजमेरा ।
देवी नांदणि पूज करांही, फुनि गोधा जिन सांति पुजांहीं ॥७५६॥ दोहा : देवी तजि जिन सांति कौ, पूजन लागे जेम ।
वीते वरष कितेक सो, भवि सुरिग कारण तेम ॥७५७॥ नांदरिण की मूरति हुति, रूपा तरणी मनोग्य । ताहि भांजि सुवरण तरणी, करि पूजी-अति जोग्य ॥७५८॥ जव नांदणि करि क्रोध कछु, कीन्हौं तिनकौं दोस । तवत पूजे सांति जिन, हरयो देवी को रोस ॥७५६॥ वारहसै अठताल के, सालि भई यह रीति ।
तवतै गोधा सांति जिन, पूजत हैं करि प्रीति ॥७६०॥ चौपई : तीन जानियौं कुल गहलोत, पूजै पद्मावति ऐ गोत ।
पाटोधी चौधरी सु सार, सेठी जांनि दोय परकार ॥७६१॥ इकतौ कहि आयो सु सहीजे, दुतिय वंस इष्वाक कहीजे । सेठी गोत लोह-सिल देवी, पूजत है इह भांति सुरणेवी ॥७६२॥ इक कुल कोटेचा सुरिण-वांरिण, कान्हड देवी गोत सौगांणी' । इक कुल ठीमर देवी लाहरिण, कालागोत न हांक वाहरिण ॥७६३॥ कुरवंसी ऐ गोत अठारा, अव इष्वाक वंस मैं ग्यारा। गोत भए कुल देव्य सुरणीजे, भेदभाव तामैं न करीजे ॥७६४॥ है कुल मेरठि लुह-सिल पूजे, गोत लुहाड्या लावट गूंजै। त्रय कुल कूरम गोत कटारया, औ गंगवाल झांझरी भारचा ॥७६५॥ ऐ तीनों पूजत जमवाय', इक कुल नांदेचा सुभ पाय । गोत नौपडा कहै अनूप, पूजत मस्ता देव्य स्वरूप ॥७६६॥ कुल वड़गूजर गोत सु तीन, विरल्या अर वावसा कुलीन । ए द्वै मानत देवी सिरी, नमैं वौहरा सौ तिल सुरी ॥७६७॥
७६१ : १ प्रकार। ७६३ : १सोगांणी। ७६६१ जमवाइ।
ain Education International
For Private & Personal Use Only
For Private & Personal Use Only
www.jainelit
www.jainelibrary.org