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बुद्धि-विलास
अरिल : पंच जु कुल पडिहार गोत देवी सुनें,
क्षेत्र मालिया दोसी चांवड कौं मनैं। पोगोल्या कडवा गिर नांदिल मानिएँ,
वड़साली पांडया सरसलि के जानिऐं ॥७४४॥ कुलहु जील तूवर फुनि सोढा सांपला,
इन च्यारयौं कुल मांहि गोत कहिऐ भला। दगड़ा पर पाटणी गिनोड्या सांषुर[ए]या,
याही क्रम तै देव्य नाम लषिऐ भएया ॥७४५॥ सरसलि प्रांमरिण सकररिण अरु संभराय के,
पूजन जात सु च्याह्यौं गोत सुभाय के। राजहंस अहंकारचा गोत सु दोय है,
___ सरसलि सरस्वतिन मैं सुकुल नहि होय है ॥७४६॥ दोहा : कुल इन दोन्यौं गोत के, लिष्यौ न दे यौ कोय ।
तातै वरनन नहि कयौ, दोस ना वोज्यौ लोय ॥७४७॥ सोमवंस के वरनिऐं, गोत तीन चालीस ।
अव कुरुवंसी जे भये, तिनकी सुनहु कहोस ॥७४८॥ चौपई । कुर-वंस मैं अठारा गोत, तिनके कुल फुनि देवी होत ।
नाम गांम के गोत प्रमान, सो सुनि लीजे सकल सुजान ॥७४६॥ कुल नांदेचा गोत सु तीन, देवी सोनिल पूजहि दीन ।। छाहड़ कोकराज जुग-राज, ऐ तीनौं तिनमैं अति लाज ॥७५०॥ कुल मोहिल व गोत विसाल, सिरी मूलराज लटिवाल । इक कुन के जानौं गैहलोत', तिनको वीरपंडिया गोत ॥७५१॥ ऐ तीनौं श्री देव्य पुजाहि, फुनि कुलदेवड़ानि व मांहि ।।
कुल भाएयांरु निगोत्या जेह, देवी हेमां पूजत तेह ॥७५२॥ दोहा : फुनि को कारण पाय के, गोत निगोत्या जांनि ।
कुलदेवी चावंड की, तिनकै है अति मांनि ॥७५३॥ चौपई : कुल चंदेल गोत द्वै सार, मूलसरया फुनि चांदूवार ।
देवी मातरिण पूजत गुरणी, तामैं भेद कहूं सो सुरणी ॥७५४॥ ७५१ : १ गहलोत ।
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