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बुद्धि-विलास
पीतल्या पहाड्या सांभरया नरपति हेला पांडिया ।
इम राजभर अरु छावड़ा चौदह गोत सुमांडिया ॥७३३॥ सोरठा : तिनमैं वारह मांहि, वंसदेव्य कुल ऐक ही।
भेद भाव कछु नाहि, कहि आयो सो जानियौं ॥७३४॥ रिल : गोत दोय की वात भई असे नई,
देव्य सावड़ा तणें वहुरि औरिल भई । कुल देवी संभराय सांभरया पूजंही।
वरष कितेक वदो तै इम पूजै सही ॥७३५॥ दोहा : या विधि तीयालीस मैं, चौदह कुल चौहान ।
भये सु भाई भूप जुत, फुनि यह सुनी सुजांन ॥७३६॥ थापे हैं जिनसेनि तौ, चौदह ही कुल गोतः । वहुरि और मुनिवर नु मिलि, थापे गोत सुपोत ॥७.७॥ षट कुल पांमेचा किये, देवी पौरिल मांनि । रारा रावत राउंका, मोघया मौंठ्या जांनि ॥७३८॥ गोत विलाला दोय विधि, इक कहि प्रायो सोय ।
दूजे सोनिल कौंन मैं, कुल नंदिचा होय ॥७३६॥ सारठा : कुल जादव मैं पांच, गोत नीकसे हैं ललित ।
तामैं मानहुं सांच, डैहचल पूजै वैद तौ ॥७४०॥ वनमाला फुनि वंव, भडसाली अरु नरपत्या।
करत न तनक विलंव, पूजत देवी रोहणी ॥७४१॥ अरिल : कुल मोहिल मैं गोत च्यारि ही जांनिकै',
___टौंग्या पूजत देवी चावंड आनिकै । वहुरि वाकलीवाल कासिलीवाल हैं,
___ हलद्या पूर्ज देवी जीरिण विसाल हैं ॥७४२॥ दोहा : कुल गैहलौत' सुगोत त्रय, पूजत गणपति चौथि।
है विनायक्या विवला, वहुरि पोटल्या कोथि ॥७४३॥
७४२ : १ जांनकै । ७४३ : १ गहलोत ।
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