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दोहा :
बुद्धि-विलास
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प्राचारिज वोले नृप श्रहो, श्री जिनधर्म मर्म तुम गहो । और सबै त्यागौ मत जाल, तौं वचाव हाॅ है ततकाल ॥७२१ ॥ भूपति हाथ जोरि सिर नाय, सबै कवूली मन वच काय | तवतें चौकी दे ईश्वरी, व्याधि सबै पुरजन को हरो ॥७२२ ॥ पिरजा सुखी भई सव जांनि, भूपति हरष अधिक मन मांनि । वोले तुमहि धन्य मुनि नाथ, जग वूडत राष्यौ गहि हाथ ॥७२३ ॥ श्रवजो प्राग्या ह्र सो करें, तुम प्रसाद हम भव दधि तरें । मुनि भाषी करिऐ नृप सार, श्रावग के वृत अंगीकार ॥७२४ ॥ जगत मांहि हैं जन वहु रूप, तिनमैं होहु महाजन भूप । और ग्रांम हूं तैं नर-नारि, प्राऐ तिन्हें सवको षांप सु षंडेलवाल, ठहराई समेति से मुनि इष्ट के जोरि, सवकौं श्रावग किये
बुलाय विचारि ॥७२५ ॥
भूपाल । वहोरि ॥७२६ ॥
किए
ही प्राचीन ।
जे आऐ जिह गांम तैं, ताही नांम ठहराऐ फुनि वंस कुल, पूरव नांम वंस के जो हुते, श्रागें सोम-हरी इष्वाक कुरु, फुनि सो रई प्रवीन ॥७२८ ॥ तामैं सोम सु वंस मैं, गोत तीन चालीस । भये रहे कुल प्रादिके, देवी नई प्रथमहि भाई भूप जुत, चौदह जांनि ते जिनसेनि समोधि कैं, कीन्हें श्रावग सुद्ध ॥७३० ॥ वंस सोम चौहान कुल, गोत गांम के नांम ।
थपीस ॥७२६ ॥ सुबुद्ध ।
सथापि ।
कदापि ॥ १३२ ॥
जहां जहां जो वसत हो, सो दीन्हौं अभिराम ॥७३१ ॥ कुलदेवो चक्रेस्वरी, तिनकी दई सो पूरै मन कांमनां, विघन न होय किय भून षंडेला गांव भावसा तरणें भावसा जल वांगी भूलरणां पापड़ीवाल दरौध्या अरडक्या गांम क नाम
छंद छप्पे : गोतसाह
७३३ : १ छप्पे only 1
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गोत सु
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जो
सुगोत ।
उदीत ॥ १२७ ॥
नायक ।
लायक ॥
वताये |
कहाऐ ॥
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