________________
बुद्धि विलास
[८७ इक कचगार दुतिय हय गार, ऋतिय ब्राह्मण फुनि लौ गार। द्रावड़ नल या पन सिषवाल, काकलवाड़ जैन सगवाल ॥६६६॥ श्रवण पगाहुं मड़षित्रिया, वोसवाल अर वुढ्ढोलिया। ऐ सव षांप वहैतरि भई, वारह और सुनौ यन मई ॥६९७॥ कंधड़ जनड़ा कोरड़वाल, षडहूता अरु मेड़तवाल' । है अहिछत्र बहुरि दोहला, हरसूरा सुड़ीड़हा भला ॥६९८॥ गोतवंसी वल री गुल कहे, पौहकरवाल सु वारा भये । षांप वहैतरि तौ वै कही, ऐ मिलि सव चौरासी भई ॥६६॥ पोथी पांच सात कौं देष', करि विचार यह कोनौं लेष' । यामै भूल्यौ चूकचौ होय, ताहि सुधारि लेहु भवि लोय ॥७००॥ इनंही मैं जो षंडेलवाल, तिनमैं निकसे गोत रसाल । चौरासी है तिनके नाम, सो विधिवत कहियत सुषधांम ॥७०१॥
अथ पंडेलवाल उतपति वर्नन चौपई : श्री प्रभु महावीर जिनराय, तिनहि नमौं भवि मन वच काय ।
पीछे भये कितेक मुनिंद, तिनमैं यसोभद्र गुणविद ॥७०२॥ एक अंग धारक यह मुनी, यनकहुं वाते असे सुनी। नगर पंडेला यक अभिरांम, भूपति तसु षंडेल गिर नाम ॥७०३॥ वंस सोम कुल है चौहान, सोभित तासु तेज जिम' भान । तहां मुनीस्वर गये कित्तेक, विप्रनु तें किय वाद अनेक ॥७०४॥ जीते वाद रहे मुनि जहां, विप्रनु कोप कियो तव तहां । पुरमैं मलवाई को रोग, उपज्यौ काहू पाप संजोग ॥७०५॥ छीजन लगे वहुत नर नारि, प्रोहित विप्रनु तवें विचारि। जग्य सथाप्पो जव नरमेद, तामैं होमें मुनि पढि वेद ॥७०६॥ तवतै विथा अधिक ऊपनी, मरन लगी पिरजा पुर तनी। फुनि सव देस मांहि विन नीति, प्रगटयौ रोग महा विपरीत ॥७०७॥
६९७ : १ वुद्देलिया। ६९८ : १ मेरुतवाल। ७०० : १ देषि। २ लेषि । ७०४ : १जिमि।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
www.jaineli