________________
८६ ]
बुद्धि-विलास प्रागै तौ श्रावक सवै, ऐकमेक ही होत । लगे चलन विपरीति तव, थरपे षांप रु गोत ॥६८३॥ थपी वहैतरि षांप ऐ, गांम नगर के नाम । जैसे पोथिनु मैं लषी, सो वरनी अभिराम ॥६८४॥
षांप वर्नन चौपई : गोला पूरव गोला राड़ा, कहैं लवेचू गोल सिघाड़ा।
षंडेलवाल महाजन सोहै, जैसवाल जग मैं अव जोहै ॥६॥ वधेरवाल सु अग्गरवाला, सहिलवाल जिन धर्म सम्हाला। सात षांप पुरवार कहाय, तिनके तुमको नाम सुनावै ॥६८६॥ अठसष्षा फुनि है चौसष्षा, सैंहसरड़ा फुनि हे दोसष्षा। सोरठिया पर गांगड़ जांनौं, पद्मावत्या' सप्तमां मानौ ॥६८७॥ फुनि ढूसर अरु वरहासेरणी, पंथड़वाल गहोई लेगी। इकईसवा जु जांणि सचारणा, वहुरि अजोध्यापुरी वषाणां ॥६८८॥ गोरावाड़ वहुरि कठनेरा, वीडलसानी मसरा हेरा। धकड़ा गूजरवाली वाल, माणडा सव मांहि विसाल ॥६६॥ वेरवड़ा फुनि पल्लीवाल, गंगरिक ए वत्तीस सम्हाल । तीन षांप के हैं द्वै नाम, तेहू तू सुनि लै अभिराम ॥६६०॥ सेहरिया निगमां गुजराती, मेवाड़ा रा-सूयचा-भाती'। परवा पंडावता हू वाजें, ऐ तीनों षटनांम विराजै ॥६९१॥ नागदहा पर नरस्पयं घोड़ा, वयानश्रा फुनि है चीतोडा। है हरधरा और सोदरा, कुलया श्रावक अरहूं नरा ॥६९२॥ दहवड़ राय कड़ावरण धोरा, चतुरथ श्रावक है अति भोरा। पंचम श्रावक है सुभकारी, ऐ अठतालीसौं अविकारी ॥६६३॥ चंचल वल गोरा गुणवान, करमणोत श्रीमाल सुजांन । फुनि ऐ श्रावक पांच कहावै, है चिडुकरा विवोरा भावें ॥६९४॥ मद वेवावली गुरा जानौं, कमटी प्रागै श्रावक प्रांनौं । नुतपा श्रावक सव मन भाये, तुला सिरी श्रीमाल कहाऐ ॥६६॥
६८७ : १ पदमावत्या। ६९१ : १ मेवाडा रा या सूचा माती।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org