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________________ [ ८५ अरिल : दोहा : बुद्धि-विलास गादि श्री महावीर को, वैठत पाये संत । तिनकौं वन' सम मानिक, पूजहू सकल महंत ॥६७३॥ इति पट्टावली पूर्ण ॥ अथ पागम कथन वर्नन' ॥ फुनि यह पागम कथ्यौं सु भवि सुनियौं सवै, संवत अठ्ठारहसै वीतेंगे जवै। ता वरष कितेक गये इम भास ही, दक्षिण दिसि मैं वंध्याचल मैं गिर पास ही ॥६७४॥ पुस्कल नगर विषैसु ह, वीरचंद मुनिनाथ । गछ पडिकमण पर क्रिया, न्यारी करिहै गाथ ॥६७५॥ भील संघ उतपति करै, नये ठांनि वहु वाक्य । ग्याना'वरनी कर्म कौ, लहि करि के परिपाक ॥६७६॥ वहु विधि करि जिन मत जु है, अव तिह तणौं। निपात । करिसी फुनि मुनि कोन ह, जो मेटै मिथ्यात ॥६७७॥ कहु जिन मग विधि और हो, चल्यौं जाय इम धर्म । ज्यौं त्यौं सुख दुष भुंजि को, करि करि के वहु कर्म ॥६७८॥ आवै पंचम काल कौ, अंत जवे इक कोय । मूल गुणनि कौं धारि कैं, वीरांगज मुनि होय ॥६७६॥ अलप पढ्यौ है सासतर, तौहू जैनि प्रकास । करिहै वहुरि मिथ्यात कौ, करिसी वहै विनास ॥६८०॥ भद्रवाहु को चरित लषि, वरन्यौ है या मांहि । भविजन लषि मोकौं कछू, दोस दीजियो नांहि ॥६८१॥ अथ श्रावक को उतपति वर्नन' अव उतपति श्रावकनु के, षांप गोत की जेम । भई सु पोथिनु देषि करि, वरनत है कवि तेम ॥६८२॥ दोहा : २ सबै। ३ not in AI ६७३ : १ उन । ६७४ : १ from इति to वर्नन not inAL ६७६ : १ज्ञाना। २परपाक । ६७७ : १ तरण। ६८२ : १ अथ उतपति श्रावग की बर्नन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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