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________________ ८४ ] बुद्धि-विलास पंद्रह-सै-इकहैतरे, प्रभाचंद्र यह नान । वहुरि भये चीतोड' मैं, सकल गुननि के धाम ॥६६४॥ अरिल : पंद्रह-सै-इकप्रस्सी धर्म सु चंद है, ललितकीत्ति फुनि चंद्रकोत्ति सु अमंद है। भट्टारक देवेंद्रकीत्ति मुनि च्यारि ऐ, भऐ चाटसू मैं भविजन उर धारिऐ ॥६६५॥ सोरठा : नरेंद्रकीरति नाम, पट इक सांगानेरि मैं । भये महागुन-धांम, सोलह से इक्याणवै ॥६६६॥ अरिल : सत्रह-स-वाईस तणै जो साल है, सुरेंद्रकीरति भये सु तिन के पटि लहै । जगतकीत्ति देवेंद्रकीत्ति गुनलीन है, अंवावति मैं भये भटारक तीन है ॥६६७॥ दोहा : इक पट दिल्ली फुनि हुवो, महेंद्रकीरति नाम । सत्रह-सै परि-वारणवै, लह्यौ पाट गुनधांम(अभिराम')॥६६८॥ चौपई : पट्ट दोय पाये मुनिराय, नगर सवाइ जैपुर प्राय । इक खेमेंद्रकीति गुनपाल, अठारह-सं-पंद्रह' कै साल ॥६६॥ तिनकै पटि राजै वुधिवांन, सुरेंद्रकीरति तम हर भांन । साल अठारह-सन्तेईस, भये भटारक महा मुनीस ॥६७०॥ दोहा : भद्रवाहु मुनि आदि है', भट्टारक गुन षांनि । सुरेंद्रकीरति लौं भये, पट अठ्यारणवै जांनि ॥६७१॥ असे यह पट्टावली, ग्रंथनि के अनुसारि । कछु पोथिनु कौं देषि करि', वरनन कियो विचारि ॥६७२॥ ६६४ : १ चीतोड। ६६७ : १ पटि हा लहैं। ६६८ : १ अभिराम missing | ६६६ : १ ठारह-स-पंद्रह । ६७१ : १दै। ६७२ : १कैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.jaineli
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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